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सिधौली/सीतापुर।कस्बे के प्रसिद्ध श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे श्री सिद्धेश्वर रुद्र महायज्ञ भक्ति ज्ञान संत सम्मेलन में षष्ठम दिवस पर यज्ञ में परम पूज्य ब्रम्हर्षि स्वामी विद्यानंद सरस्वती महाराज का आगमन हुआ। आचार्य अनिल मिश्र के निर्देशन में वैदिक मंडल के आचार्यो ने मंत्रोच्चारण के साथ यजमान व सभासद सुनीता मिश्र द्वारा स्वामी विद्यानंद सरस्वती का स्वागत,अभिनंदन व पूजन अर्चन किया गया।स्वामी विद्यानंद सरस्वती ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि परमात्मा’, आत्मा का परम रूप साधारण इन्सान परमात्मा को अपने से अलग समझता है, परन्तु आत्मा और परमात्मा अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही परम तत्व के दो नाम हैं, अंतर सिर्फ इतना है कि ‘परमात्मा’, आत्मा का परम रूप है। ‘परम’ का अर्थ है, संपूर्ण या विराट।
उन्होंने कहा कि ब्रह्म का स्वरूप ही आनंद है,जिसका अनुभव करने मात्र से ही आनंद की अनुभूति होती है। वह परमपिता परमात्मा आनंद स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा के लिए प्यास प्रकट करना पड़ता है। व्यक्ति -व्यक्ति के लिए बेचैन हो उठता है, लेकिन परमात्मा के लिए कहां बेचैन होता है। वह परमात्मा स्वयं रस स्वरूप है। परमात्मा दर्शन से जो भाव जागृत होता है वही प्रेम है। दोनों तरफ बराबर का भाव जागृत नहीं होगा, तब तक प्रीति पराकाष्ठा पर नहीं पहुंच सकती है। बिसवाँ से पधारी मानस मंदाकिनी पूर्णिमा मिश्रा ने कहा कि सत्संग तो श्रवण में ही होता है। जीवन में ज्ञान की प्यास का बहुत महत्व है। अगर प्यास होती तो जिज्ञासा प्रकट होती है। भगवत भक्ति में प्यास उत्पन्न होने लगती है तो समझो कि तुम्हारे अंदर भगवती रूपी भक्ति अवतरित हो रही है। प्यास को बुझना भी नहीं चाहिए। अगर प्यास नहीं रहे तो जीवन में रस नहीं रहेगा। इसलिए सत्संग को श्रवण करो और अपने जीवन में उतारो। भिंड मध्य प्रदेश से पधारे सुरेश रामायणी ने कहा कि मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है। मनोगत भाव विचार ही जीवन की दिशा, दशा तय करते हैं। इसलिए जीवन के उत्थान के लिए जरूरी है कि मन को शुभ संकल्प और पवित्र स्वच्छ विचारों से संपन्न रखें। इसके साथ ही अपना परिवेश भी बाह्यांतर स्वच्छ पवित्र रहे। तीर्थों को स्वच्छता प्रदान करना ही तीर्थ सेवा है। सबसे उत्तम तीर्थ हमारा मन है, क्योंकि केवल शुद्ध मन में ही भगवान का वास है और वही सबसे पवित्र तीर्थस्थली है।बाराबंकी से पधारें पं० राजेंद्र तिवारी ने भक्त की व्याख्या करते हुए कहा कि वह जिस ओर से गुजर जाता है पृथ्वी का वह भाग पवित्र हो जाता है, जिस कुल में वह जन्म लेता है वह कुल पवित्र हो जाता है। यह भक्त का लक्षण है,जिस तरह पुष्प के आसपास का क्षेत्र सुगंधित हो जाता है। उसी तरह भक्त के प्रकट होते ही यह स्थिति निर्मित होती है। परमात्मा आनंद स्वरूप है।धार्मिक प्रवचनों के मध्य
मंदिर परिसर सुंदर भजनों से गुंजायमान रहा। सत्संग समापन व आरती बाद प्रसाद वितरण किया गया। इस दौरान कन्हैयालाल दीक्षित,बच्चे बाजपेई, उमेश, रवि,अनिल शुक्ल,टिंकल, टिंकज,पूजा मधु,नीता,राहुल व अनूप सहित अन्य श्रद्धालु मौजूद रहे।