खबर दृष्टिकोण कुशीनगर
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक शब-ए-बारात हर साल शाबान के महीने में आती है. शाबान इस्लामी साल का आठवां महीना होता है. शाबान का महीना रजब के महीने के बाद आता है. जब शाबान का चांद दिखता है, तो उसके 14 दिन बाद शब-ए-बारात होती है. इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 12 फरवरी पीर यानी सोमवार के दिन शाबान का महीना शुरू होगा. शाबान के महीने की 15 वीं तारीख को शब-ए-बारात मनाई जाती है जिसे हम 15 शाबान के नाम से भी जानते हैं. शाबान के महीने में 25 फरवरी को आज मगरिब के बाद से शब-ए-बारात मनाई जाएगी.
हिंदी में शब को रात कहते हैं और बारात का मतलब है बरी होना या आजाद होना यानी गुनाहों से बरी हो जाना. इस रात की इतनी फज़ीलत है कि अगर कोई सवाब की उम्मीद के साथ इस रात में इबादत करते हुए अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगता है, तो बहुत जल्द उसके गुनाह माफ हो जाते हैं.
*शब-ए-बारात की क्या है खासियत?*
मिर्ज़ा ग़ालिब रिसर्च एकेडमी के डायरेक्टर और इस्लामिक स्कॉलर डॉ. सय्यद इख्तियार जाफरी ने बताया कि जिस तरह पूरे साल का बजट सरकार पेश करती है कि पूरे साल क्या-क्या होगा, उसी तरह इस रात में आने वाले साल के तमाम कुदरती कामों का लेखा-जोखा करने की जिम्मेदारी अल्लाह फरिश्तों को देता है. कुछ लोगों का मानना है कि इस रात में खास इबादत की जाती है लेकिन इस्लामी मान्यता के मुताबिक इस रात में कोई खास इबादत नहीं की जाती है, जो सुन्नत से साबित हो. हालांकि इस रात में नफली इबादत की जा सकती है. नफली इबादत यानी नफील नमाज़ पढ़ना, कुरआन की तिलावत करना, अल्लाह का जिक्र करना और दुआ करना.
*इसलिए कहते हैं मगफिरत की रात*
सय्यद इख्तियार जाफरी ने कहा कि इस रात को बख्शिश की रात यानी मगफिरत की रात भी कहा जाता है. इस रात मुस्लिम लोग जागकर अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. इस रात में की गई इबादत से गुनाहों से छुटकारा मिलता है. जरूरी नहीं कि इस रात की नमाज जमात के साथ ही पढ़ी जाए, इसे लोग अपने घरों में अलग-अलग पढ़ें तो ज्यादा बेहतर है. शब-ए-बारात पर लोग कब्रिस्तान जाते हैं और इंतकाल फरमा गए लोगों की कब्र पर उनकी मगफिरत के लिए दुआ मांगते हैं.