महाराज उत्तानपाद के दो विवाह हुए जिसमें एक का नाम सुनीति दूसरे का नाम सुरुचि है।
सुरुचि के साथ महाराज उत्तानपाद गंधर्व विधि के द्वारा विवाह करते हैं जैसे ही सुरुचि के साथ विवाह करके अपने महल में पधारे तो सुनीति को पता लगा कि मेरे महाराज दूसरा विवाह करके आ रहे हैं तो सोने के थाल में आरती सजाकर के स्वागत करने के लिए गई जैसे ही सुनीति आरती करने लगी उसी समय सुरुचि ने महाराज उत्तानपाद से कहा यह कौन है उत्तानपाद बोले यह मेरी पत्नी सुनीति है तब सुरुचि ने कहा अगर महल में यह रहेगी तो मैं नहीं रहूंगी अतः इन्हें त्यागना होगा महाराज उत्तानपाद ने सुरुचि के कहने पर धर्म स्वरूपा महारानी सुनीति को त्याग दिया महारानी सुनीति राज्य के एक बगीचे में अपनी पर्णकुटी बनाकर रहने लगी और भगवान नारायण का ध्यान करने लगी। कुछ समय व्यतीत होने पर सुनीति ने एक सुंदर से बालक को जन्म दिया जिसका नाम ध्रुव रखा बचपन से ही ध्रुव भगवत भक्त हुआ ।
एक दिन बालक ध्रुव खेलते खेलते अपने राजमहल में पहुंचे और अपने पिता उत्तानपाद की गोदी में बैठ गए महाराज उत्तनपद भी लाड़ प्यार करने लगे उसी समय सुरुचि वहां आयी ध्रुव को सिंहासन से नीचे गिरा दिया और कहा कि अगर इस सिंहासन पर बैठने की इच्छा है तो वन में जाकर के भगवान का तप करो और जब वह प्रसन्न हो जाएं तो उनसे यह मांगना कि मुझे सुरुचि के गर्भ से जन्म मिले तब इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी हो।
तो बालक ध्रुव रोता हुआ अपनी माता सुनीति के पास आया और माता सूनीती से कहा मां मैं बन में जा रहा हूं भगवान का तप करने के लिए । सुनीति में बहुत रोका परंतु बालक ध्रुव नहीं रुके बन की ओर प्रस्थान कर गए बीच रास्ते में नारद जी से भेंट होती है नारद जी ने गुरु मंत्र दे कर के आशीर्वाद देकर के कहा बेटा ध्रुव मथुरा में यमुना किनारे मधुबन नाम का एक वन है वहां जाओ और भगवान का तप करो तुम्हे भगवान अवश्य मिलेंगे।
ध्रुव जी जाते हैं 6 महीने का कठोर तप करते है ध्रुव जी ने अल्प आयु में भगवान श्री नारायण का दर्शन पाया कथावाचक प सागर कृष्ण शास्त्री
स्थान ग्राम गोरा (करनपुर)
आयोजक लल्लन प्रसाद निरंजन पूर्व एडीओ
बृजेश कुमार निरंजन
जितेंद्र कुमार निरंजन,गजेंद्र निरंजन