खबर दृष्टिकोंण :अनुराग मिश्रा
गोला गोकर्णनाथ छोटी काशी में ऐतिहासिक मेला चैती 2025 के सांस्कृितक मंच पर नौ वें दिन हुए स्थानीय कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि पंचायती राज समिति के सभापति /दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री मोहमदी विधायक लोकेन्द्र प्रताप सिंह
विशिष्ट अतिथि पूर्व जिला मंत्री भाजपा वीर सिंह चौहान, जिला उपाध्यक्ष द्वय विनोद वर्मा, विजय महेश्वरी, पूर्व जिला कोषाध्यक्ष सुशील त्रिवेदी, जिला उपाध्यक्ष अनुसूचित मोर्चा हरीश भारती, जिला महामंत्री पिछड़ा वर्ग मोर्चा विनोद स्वर्णकार, जिला महामंत्री किसान मोर्चा धर्मेन्द्र सिंह , जिला उपाध्यक्ष अल्पसंख्यक मोर्चा सरताज खान ,विधानसभा संयोजक अवधेश मिश्रा, पूर्व नगर अध्यक्ष दीपेन्द्र गुप्ता,नगर महामंत्री राजेश राठौर, नगर उपाध्यक्ष राजन साहनी, नगर अध्यक्ष शत्रोहन मिश्रा, नगर अध्यक्ष मोहमदी मनोज गुप्ता, मण्डल अध्यक्ष राजापुर बेनी राम भरोसे वर्मा, भूरे सिंह चौहान कार्यक्रम अध्यक्ष मुरलीधर त्रिपाठी और नगर पालिका अध्यक्ष विजय शुक्ल रिंकू ने दीप प्रज्जवलित कर शुभारंभ किया । इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि मोहमदी विधायक लोकेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा,” आज मै अपनो के बीच आकर अभिभूत हूँ ।कवि सम्मेलन का मौका है तो मै भी विश्व वक्ता, भारत रत्न , पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियां सुनामा चाहता हूँ।
” टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं ।
*स्थानीय कवि सम्मेलन में 68 कवियों ने अपनी विधा के रंग बिखेरे*।
श्री मधुकर सैदाई ने-
*लिक्खे न हकीकत वो कलमकार नहीं है, हर शख्स किसी कौम में गद्दार नहीं है ।*
श्री रामकुमार गुप्ता-
*हम हैं अकेले नहीं ईश्वर हमारे साथ, कर्म पथ पर दृढ कदम बढ़ाइये*।
श्रीपाल वर्मा ने
*सबके मां बाप एक दिन चले जायेंगे, यह हैं भगवान फिर से न मिल पायेंगे*।
श्री फिरोज खां बेदिल भारती ने-
*आओ मासूम लबो की हंसी तलाश करें, ग़मो का दौर है मिलकर खुशी तलाश करें।*
श्री रविसुत शुक्ल ने-
*नापती है उप्र करके फासले को, जिंदगी फीता नही तो और क्या है। कार्य करके भी करे चिंता न फल की, जिंदगी गीता नहीं तो और क्या है।।*
श्री संत कुमार बाजपेई ने-
*घर का आंगन मत बांटो मतभेदों की दीवारेां से, फूल बिछा न सको तो पथ को पाटो कभी न खारों से।*
श्री श्याम मोहन मिश्र ने-
*राम के दूत नमामि प्रभो अपने इस दास को गण्ठ लगाओ*
श्री हितेश सुशांत ने-
*शीश कट जाए पर झुकने न पाए ध्वज, रग रग में स्वदेशी स्वाभिमान चाहिए।*
श्री अमर फतेहपुरी ने-
*जय नेता, जय हिन्दुस्तान, तुमसे अच्छे हैं शैतान।*
श्री गुप्ता भोले ने-
*हम छोटी काशी वाले हैं, अलबेले बड़े निराले हैं,
मत समझो भोले भाले ही मतवाले हिम्मत वाले हैं।*
श्री कन्हैया सिंह रास ने-
*जलाओं दीप खुषियों के उजाला हर तरफ कर दो,
न भूखा फिर कोई सोये, निवाला उस तरफ कर दो।*
श्री सुधांशु त्रिवेदी ने-
*कहने को तो हम कुछ भी कह सकते हैं साहब लेकिन
बिना पिता के पूरा घर परिवार नहीं हो सकता है।*
श्री गेंदन लाल कनौजिया- सुन मानव मन आज जगत में सघन परीक्षा तेरी, विविध भांति के साज सजाये भौतिक प्रीति घनेरी।
श्री असलम हिन्दुस्तानी-
*कभी किसी गरीब के सर पर भी हांथ रख वरना तू अपनी अमीरी अपने पास रख।*
श्री हामिद ने-
*यू तो अब कोई हमारे लिए अजीज नहीं, लेकिन तुम बिके जितने में उस कीमत पर रोना आया।*
श्री अंकित मौर्य ने-
*मै कड़ी धूप में जलता हू, इस यकी के साथ मैं जलूगा मै जुगा तो मेरे घर उजाला होगा।*
श्री आलोक तिवारी ने –
*है स्वतंत्र यह देश हमारा परतंत्र नहीं होने देंगे,
देश के अंदर जयचंदों के षड़यंत्र नहीं होने देंगे।*
श्री नवनीत गुप्ता ने-
*पागल तो होते हैं लोग इश्क में चोट खाने के बाद।*
कु0 काव्या सक्सेना ने हास्य रस पर कुछ यूं कहा-
*प्रेमिका मिली सब्जी मंडी में, छोड़ा था नौचंदी में।*
श्रीमती शिप्रा खरे ने-
*बचपन छूटा नैहर छूटा, मैयाहुई निहाल, बाबा तेरी सोन चिरैया आज चली ससुराल।*
श्री बृजेश तिवारी बृजेश-
*जब मन को विस्वास नहीं है तो फल की आशा मत करना।*
श्री तारिक इस्लाम –
*थी मेरे पास दौलत ए ईमान इसलिए, मुझको खरीदने में जमीदार बिक गए।*
श्री आरिफ खान ‘आरिफ’ ने-
*इन अंधेरो ंको भी औकात पता चल जाये, जाने दीजे ये जहां तक भी उजाले जायें।*
श्री फैसल हवीब ने-
*चार दिन और मुहब्बत से गुजारों भाई, मत उठाओ अभी दीवार हमारा क्या है।*
श्री आसिफ सिद्दीकी-
*इश्क है इश्क वो गुमनाम उसे हरने दो, क्या जरूरी है मेरे नाम से जाना जाये*।
श्री शशिकान्त मिश्रा-
*ओज काव्य के वि ने बोलो सुन्दर श्रंगार लिखा, सौन्दर्य के वर्णन में सुन्दरता को अंगार लिखा।।*
श्री गर्वित शुक्ला-
*हो प्रतीक्षारत किसी की याद में कटता है जीवन, हो समर्पित प्रेम में अनुराग में कटता है जीवन।*
श्री उदय मिश्रा
*ये लंबी लंबी बातों का तुम समय कहा से लाती हो, ये लेक्मी के काजल का तुम अर्थ कहां से लाती हो।*
श्री शिवम गिरि ने-
*सजी सितारों की गोला की धरती और अकाश, ऐतिहासिक चैती मेले का रच दिया नया इतिहास।।*
श्री अनंग वर्मा ने-
*जहां है विराजमान बाबा श्री भोलेना िगोला गोकरनणनाथ्ज्ञ नाम विस्ताराहै*
सीता रसोई लक्ष्मणजति सोई आति रावण के खार सतो रूप् अनुहारा है
दीनन दुखहारी जहां देवियां भी न्याी कहत अनंग ऐसा गोला मम प्यारा है।
श्री सुरेन्द्र वर्मा ने-
*नगर धिराज हमारे देखो, खुशियाँ देते आज है।
पुरूस्कार जब शिक्षक पाते, चेहरों पर मुस्कान है।*
श्री सुरेश चन्द्र सक्सेना
*एक मोटी ताजी कलुई कुतिया गोष्वा का कुकर लई लिहिसि डगरि*
*बोली अपने पति कुतवा से हमहूं लई आये लेउ डकरि।।*
श्री बी0पी0 मिश्र ”बेधडक“ ने-
*सुधरी है शिक्षा की हालत, समय आ रहे टीचर, बदल गया अब नगर पालिका, का मित्रों है फीचर।*
पत्रकारिता का बढ़ा कितना है आकार
पृथ्वी से आकाष तक बिकता है अखबार।
श्रीकृष्ण तिवारी ने-
*शीश पर आशीष जिसके लाखों थे आज वही शीश मा भारती को भेंट में चढ़ा गया*।
श्री के0पी0 शर्मा ”दीपक“ ने-
*याद जमाना करे हमे भी हर इंसान के प्यार में, प्रभु तुम हाथ लगा देना मेरे जीवन की पतवार में*।
श्री पवन पिंजर ने-
*आपकी याद आती है तो झर-झर आश्र बहते हैं, नहीं वे बोलते कुछ भी मगर हर दृश्य कहते हैं।*
श्री गौरव पांडे ने वीर रस पर कहा-
*कि हर बहती हुई नदी गंगा तो नहीं, जो दीप से डर जाए वह पतंगा तो नहीं।
कहने को करोड़ो भारतवासी हैं मगर, हर एक के दिल में तिरंगा तो नहीं।।*
डॉ. शिवचंद्र प्रसाद ने –
*तोप, तलवार, बम बनाके हथियार यार आह छीन लीन्हों मानवता का प्यार।
बनते हो समझदार फिर भी हो गये खूंखार यार आह छीन लीन्हों मानवता का प्यार।।*
राहुल विश्वनाथ ने-
*विरह में जलते हैं प्रेमी कोई मुझको बताए कैसे?
किसी की याद में पल पल वे तन्हा रहते हैं कैसे?
प्रेयसि मोहन वाण चलाकर हृदय बींध कयों डाला।*
कृष्ण दत्त शुक्ल ने-
*नही पता था आयेगा एक दिन यौवन मतवाला।।
पहले एक सूने निकेत में तुमने जन्म लिया था।
मातु पिता और परिजनों का दुलार खूब लिया था।*
संजीव दीक्षित ने-
*इंसानों में प्यार जगाना है जग में नाम कमाना है धरापे तुमने जनम लिया, धरती का कर्ज चुकाना है।*
मुन्नेंद्र मंजुल ने-
*समन्दर से तमन्ना है अग मिलने की तौ फिर, बढाकर दायरा दरिया तुम्हें करना पड़ेगा।*
अरुन सिंह ने –
*तेरे इंतजार की घड़िया क्यों मै गिननान चाहूं, हुआ महिनों का इंतजार क्यों न किसी और को चाहूं।*
सुरेष ठाकुर बाबा ने कहा-
*मेला देखई के लिए पापा से मागिन पैसा
मम्मी दिहिन डाट नहीं मिला एक भी पैसा।*
रामस्वरूप् पति एडवोकेट-
*हम आपकी मोहब्बत के कायल है इसलिए हाथ उठा दिये हमने*
*वरना खुद की जिंदगी के लिए दुवा नहीं करते।*
ऑचल राकेष-
*वर्षों तक वन में घूम घूम बाधा विध्नों को चूम चूम, सह धूप धाम पानी पत्थर पांडव आए कुछ और निखर।*
मुख्तार रायपुरी-
*अपनी चाहत अपना रुतवा और अपनी शान है
सारे मुल्को से सुन्हरा अपना हिंदुस्तान है।*