खबर दृष्टिकोण संवाददाता शिवम मिश्रा
लखीमपुर खीरी :शिक्षा, जो कि ज्ञान का मंदिर मानी जाती है, आज व्यापार की चौखट पर नतमस्तक होती दिखाई दे रही है। जनपद लखीमपुर खीरी में निजी विद्यालयों द्वारा शिक्षा के नाम पर मुनाफाखोरी का जो घिनौना चेहरा सामने आया है, उसने अभिभावकों की चिंता को चरम पर पहुँचा दिया है।प्राथमिक कक्षाओं—कक्षा 1 से 5—तक के छात्रों के लिए निर्धारित पुस्तकें 4000 से 5000 रुपये तक की कीमत पर बिक रही हैं। वहीं दूसरी ओर, सरकारी विद्यालयों में वही शैक्षिक सामग्री मात्र 400 से 500 रुपये में उपलब्ध है। यह अंतर न केवल आर्थिक विषमता को दर्शाता है, बल्कि निजी शिक्षण संस्थानों की अव्यवस्थित व अनियंत्रित व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।इतना ही नहीं, विद्यालयों द्वारा ली जाने वाली फीस भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गरीब, मजदूर और मध्यमवर्गीय अभिभावकों के लिए यह बोझ असहनीय होता जा रहा है। शिक्षा माफिया के इस बढ़ते प्रभाव से त्रस्त होकर अब जनमानस प्रशासन से न्याय की गुहार लगा रहा है।जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस विषय को गंभीरता से लेते हुए जिले के समस्त प्राइवेट विद्यालयों की जांच कराएं—कि कहाँ कितना शुल्क वसूला जा रहा है, और पुस्तकों की वास्तविक कीमत क्या है।जब तक शासन-प्रशासन शिक्षा माफियाओं पर अंकुश नहीं लगाएगा, तब तक ज्ञान का दीपक केवल अमीरों के आंगन में ही जलता रहेगा। यदि शिक्षा को वास्तव में सर्वसुलभ बनाना है, तो इन शोषणकारी नीतियों पर तत्काल अंकुश लगाना होगा।