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ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिए बकरी पालन स्वरोजगार का साधन

 

कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया में युवाओ के स्वरोजगार के लिए आयोजित किया गया 5 दिवसीय प्रशिक्षण

• किसानो की आय बढ़ाने में बकरी पालन एक महत्वपूर्ण साधन

    खबर दृष्टिकोण

मानपुर/सीतापुर। कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर द्वारा वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन विषय पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीतापुर जिले के 6 विकासखंड से 27 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया। इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ दयाशंकर श्रीवास्तव ने कहा कि बकरी व बकरा की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है। कम लागत व आसान रख रखाव की व्यवस्था में हम बकरी पालन कर सकते हैं। जबकि बकरी पालन का कार्य जो की भूमिहीन, कमजोत वाले कृषक या मजदूरों के द्वारा किया जाता है। यह उनकी आय को दुगना करने का एक अच्छा साधन हो सकता है। बकरी पालक बकरी पालन में होने वाले नुकसान से बचने के लिए बकरियों का टीकाकरण तथा बीमा अवश्य कराया जिससे नुकसान की संभावना से बचा जा सके।

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रशिक्षण समन्वयक पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने प्रशिक्षणार्थियों को बकरी पालन के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दी । डॉ आनंद सिंह ने बताया कि बकरी पालन में अधिकतम लाभ के लिए उचित नस्ल का चुनाव जैसे सीतापुर क्षेत्र के लिये बरबरी और जमुनापारी एक बेहतर

नस्ल है। बकरियां में समय-समय पर परजीवी नाशक दवा देना, उनका टीकाकरण करना तथा संतुलित आहार व्यवस्था के द्वारा हम उनमें अधिकतम वृद्धि तथा अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं। डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह प्रसार वैज्ञानिक ने बकरी पालन की विभिन्न परियोजनाओं के बारे में चर्चा की जिसमें सरकार के द्वारा सब्सिडी दी जाती है। बकरी पालक को संगठित होकर कृषक उत्पादक संगठन बनाने की सुझाव दिया। सस्य वैज्ञानिक डॉ शशिरकांत सिंह ने पशुपालकों को साल भर हरा चारा उत्पादन की तकनीकी पर चर्चा करते हुए बताया कि बकरियों को हमें साल भर हरा चारा उपलब्ध कराने हेतु चारा वृक्ष सहजन, शहतूत, सुबबुल, गूलर पकड़ तथा बहुवर्षीय घासें जैसे हाइब्रिड नेपियर, गिनी घास इत्यादि अवश्य लगे। मृदा वैज्ञानिक डॉ सचिन प्रताप तोमर ने कहा की बकरीशाला का निर्माण ऊंची जमीन पर तथा पूर्व पश्चिम दिशा में करना चाहिए । पशुशाला हवादार तथा विभिन्न ऋतुओं से बचाव की व्यवस्था होनी चाहिए। केंद्र की गृह वैज्ञानिका का डॉ रीमा ने बताया कि बकरी साल का फर्श पक्का नहीं होना चाहिए उसकी जगह पर मिट्टी या रेत का इस्तेमाल करें तथा तीन से चार महीने पर दो से तीन सेंटीमीटर की लेयर हटा दें और उसे अपनी पोषण वाटिका में प्रयोग करें इसका बहुत ही अच्छा परिणाम सब्जी उत्पादन में मिलेगा। केंद्र के प्रक्षेत्र प्रबंधक डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि बकरी का दूध बहुत ही लाभदायक है तथा विशेष कर बुजुर्ग और बच्चे जिनका लीवर कमजोर होते हैं तथा विभिन्न वायरल रोग में इसका दूध शरीर के लिए लाभदायक तथा शक्ति दायक होता है। कार्यक्रम में सभी 27 प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया ।

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