खबर दृष्टिकोण जुम्मन अली
नई दिल्ली । शुक्रवार को उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है। हाई कोर्ट का यह मानना कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, गलत है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा यूपी बोर्ड आफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को रद्द करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मदरसा बोर्ड की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हाई कोर्ट का अधिकार नहीं बनता कि इस एक्ट को रद्द करे। बताया कि 17 लाख छात्र इस फैसले से प्रभावित हुए हैं वहीं करीब 25000 मदरसे प्रभावित हुए हैं। ये लगभग 125 साल पुराना हैं। क्योंकि 1908 से मदरसा रजिस्टर हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाई कोर्ट ने मदरसा एक्ट के प्रावधानों को समझने में भूल की है। हाई कोर्ट का यह मानना कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, गलत है।
हाईकोर्ट ने क्यों बताया था असंवैधानिक-
अंशुमान सिंह राठौर नामक एक वकील ने यूपी मदरसा कानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट ने मदरसा कानून को असंवैधानिक मानते हुए इसे खत्म करने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि ‘सरकार के पास यह शक्ति नहीं है कि वह धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड का गठन करे या फिर किसी विशेष धर्म के लिए स्कूल शिक्षा बोर्ड बनाए।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य के मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को अन्य स्कूलों में समायोजित करे।
मामले पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र, यूपी सरकार व यूपी मदरसा एजुकेशन बोर्ड को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार को 31 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा है।