*दूसरों की भूख और प्यास के एहसास का नाम भी है रोजा*
*रमजान मे विशेष पकवान और स्वादिष्ट भोजन का होता है विशेष इंतजाम*
खबर दृष्टिकोण:- जावेद खान
मोहम्मदी खीरी:-12 फरवरी से इबादत का महीना रमजान की हो रही शुरुआत,पूरे तीस रोजे के बाद ईद आती है,इस माह मे बूढें हो नौजवान ,बच्चे या महिलाएं रोजे रखते है ,इसका बहुत बडा सबाब होता है, इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान का महीना इबारत के महीने मे शुमार होता है,रोजे मे दिनभर भूखे, प्यासे रह कर ईश्वर, अल्लाह की इबादत की जाती,शाम को जब खास समय जो समय निर्धारित है उस समय रोजा खोला जाता है वही रात में प्रातः काल एक समय निर्धारित है जब रोजदार सहरी खाते हैं ,लगभग 16से 17 घंटे अपने आपको भूखा प्यासा रह कर ईश्वर अल्लाह मे लीन करके इबादत के साथ साथ अपने कामों को अजाम दिया जाता है,रोजेदारों के चेहरे पर अजीब सी चमक देखने को मिलती है,वही ऐ भी है कि भूखे प्यासे रह कर दूसरों की भूख और प्यास के एहसास का भी नाम भी रोजा है,पूरा महीना इबादत के रूप मे जाना और पहचाना जाता है,मस्जिदे सुबहे से देर रात तक गुलजार रहती है,शाम को तरह तह की दुकानें बाजारों से लेकर मसजिदों के समीप सजी रहती है,इस माह मे बरकतें नाजिल होती है,शाम को रोजा खोलने के समय तरह तरह के पकवानों के साथ साथ अन्य स्वादिष्ट चीजें अफतार में रहती हैं, वही मस्जिदों और घरों में रोजदारो के लिए अफतारी प्रतिदिन भेजी जाती है,वही लोग रोजदारों को अफतारी का इंतजाम अपने घरों में करते हैं ,कुल मिलाकर यह महीना इबारत के महीनों मे से एक होता है आओ सब मिलकर इस इबादत के महीने मे कुछ नेक काम करें।