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दस वर्ष पुराना मामला ।

 

लखनऊ! राजधानी के अपर जिला एंव सत्र न्यायाधीश विषेश न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम कोर्ट ने दस वर्ष पूर्व एक गैरइरादन के हत्या के मुकदमे 75/2013 में अभियुक्त आशीष को विचारोपरांत अपने निर्णय में दोष मुक्त कर दिया है! अभियोजन  पक्ष के अनुसार आशीष ने विजय को बच्चों बच्चों की लड़ाई के बाद पीट पीट कर मार डाला था! जिसके बाद पुलिस ने 15 गवाहों के बयान दर्ज कर पोस्टमार्टम के आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत कर और बहस करते हुये आभियोजन ने मामूली बात पर जान से मारने का जघंन्य अपराध किया है! जिसे अधिक से अधिक सजा से दण्डित किया जाये! बचाव पक्ष के अधिवक्ता नीरज गिहार ने अभियुक्त को निर्दोश बताते हुए अपनी बहस में कहा कि सभी गवाह रिश्तेदार है! कोई भी गवाह अपने साक्ष्य तक भी नही साबित कर पाया है! हालांकि इन पुलिस वालों ने ही झूठे गवाह को थाने में खड़ा कर दास्तावेज तैयार कर लिये है व हस्ताक्षर भी कराये हैं! अभियोजन कथानक मनगदंत और वास्तविक घटनाओं में हेर फेर कर तैयार किया गया है! उन्होने बहस करते हुये कहा कि तफ्तीश में की गई विवेचना अधिकारी ने साबित नही किया है और चिकित्सक ने पोस्टमार्टम और चोटों को न्यायालय में साबित नही कर पाये जिसके चलते धारा 161 से गवाहों में गभींर मतभेद पाया गया है! केस परिस्थिति की श्रृखंला बनाने में पूरी तरह असफल है जिसका लाभ अभियुक्त को ही मिलना चाहिये!

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