दीपक खरे
खबर दृष्टीकोण
कोंच(जालौन)हिन्दू पंचांग के अनुसार महालक्ष्मी व्रत अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की अष्ठमी को किया जाता है जिसमें महिलाएं व्रत धारण कर हांथी की पूजा करतीं हैं जिसके सम्बन्ध में हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि इस व्रत में सोला सूत के धागों का डोरा बनाये और उसमें सोलह गांठ लगाते हुए हल्दी से पीला करें और सोलह दूब व सोलह गेंहूँ डोरे को प्रतिदिन चढ़ाएं यह व्रत करने से सुख संपत्ति पुत्र पौत्रादि व सुखी परिवार की प्राप्ति होती है इसे महालक्ष्मी जी का व्रत तथा गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है जिसमें प्रचलित कथा के अनुसार भाद्रपद शुल्क अष्ठमी से गांधारी तथा कुंती अपने अपने महलों में नगर की महिलाओं के साथ व्रत का आरंभ करने लगीं इस प्रकार 15 दिन बीत गए और सोलहवें दिन आश्विन कृष्ण अष्ठमी के दिन गांधारी ने नगर की प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए वुला लिया लेकिन माता कुंती को नहीं बुलाया जिस पर माता कुंती उदास होकर बैठ गयीं जब पाण्डु पुत्रों ने माता से उदासी का कारण पूंछा तो उन्होंने बताया कि महालक्ष्मी व्रत का उत्सव गांधारी के महल में मनाया जा रहा है और उनके सौ पुत्रों ने मिट्टी का विशाल हांथी बनाया है और मुझे पूजन के लिए नहीं बुलाया है वहीं नगर की प्रतिष्ठित महिलाएं गांधारी के महल में चलीं गयीं जोस पर अर्जुन ने कहा कि माता आप पूजन की तैयारी करें हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हांथी का पूजन होगा इधर माता कुंती ने नगर में ढिढोरा पिटवाकर पूजा की विशाल तैयारी शुरू कर दी उधर अर्जुन ने वाण चलाकर स्वर्ग से पृथ्वी तक रास्ता बना दिया और ऐरावत हांथी को वुला लिया जैसे ही ऐरावत हांथी के आने का समाचार गांधारी के महल में उपस्थित महिलाओं को मिला तो वह सभी महिलाएं पूजा की थाली लेकर माता कुंती के महल में पहुंच गईं तब से महालक्ष्मी जी के पूजन में गजानन की पूजा होती है वहीं लक्ष्मी जी के बारे में कहा गया है इसी व्रत को महिलाओं द्वारा दिन रविबार को अपने अपने घरों में व्रत रखकर और विधि विधान से पूजा अर्चना कर एवं कथा पढ़कर मनाया गया और घर परिवार की सुख समृद्धि की कामना माँ गजलक्ष्मी से की।