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गंगा का प्रवाह रोकने से ही उसमें ऑक्सीजन की मात्रा घटी, 

 

 

जिसके कारण अधिकांश स्थानों पर जलीय जीव गायब

 

 

गंगा में सब और सब मे गंगा

 

लखनऊ। अधिकतर विद्वान यूरोपीय विचार से प्रभावित हैं इस लिये गंगा का महत्व नहीं समझते।इसका उदाहरण टेहरी का बांध बनाने में दिया गया अनापत्ति प्रमाण पत्र है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार जलीय जीवों को जीवित रहने का मुख्य कारण जल में घुलित ऑक्सीजन होती है। केवल गंगा जी ही हैं जिनके प्रवाह में कल-कल की आवाज गूंजती है।जल प्रवाह के कलरव से ही जल में ऑक्सीजन घुलती है।नदियीं पर बांध बनाने से जल का मुक्त प्रवाह रुक जाता है। अनियोजित शहरीकरण से नदियां दुसित हुई और सिमटती गयीं। प्राचीन अवधारणा है कि नदियों के दोनों ओर 5 से 6 किलोमीटर तक अंतः प्रवाह होता है। जो अतिक्रमण के कारण समाप्त होते गये। नदियों के दूषित होने के चार मुख्य कारण हैं। पहला जनसंख्या वृध्दि, दूसरा अनियोजित विकास, तीसरा विकृत आस्था और चौथा अत्यधिक प्लास्टिक का उपयोग बढ़ना। उन्होंने अनियोजित विकास का उदाहरण देते हुए कहा कि गोमती रीवर फ्रंट विकास का नहीं विनाश का मॉडल है। टिहरी का बांध गंगा के अविरलता में बेड़ी बन गया। गंगा में ऑक्सीजन का स्तर कैसे संरक्षित रह सकता है जब उसका प्रवाह बांधों ने रोक दिया।महाभारत काल खंड तक ऐसा कोई पौराणिक प्रमाण नहीं है जिसमे यह वर्णित हो कि अंतिम संस्कार नदियों के तट पर करने की बात मिले। जिन मूर्तियों की हम प्राण प्रतिष्ठा करते हैं उन्हें नदियों में नहीं प्रवाहित करते। जो लोग घर का कूड़ा, पुरानी मूर्ति व अन्य अवशेष नदी में डालते हैं उन्हें नदियों के जल से मोक्ष की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हर जल गंगा मान कर उसका संरक्षण करें। उसकी पवित्रता उसके जीवन से है। गंगा समग्र ने जल स्रोतों को जलतीर्थ घोषित करता है। जल स्रोत को जीवित प्राणी का दर्जा दिया जाय। नदियों-तालाबों का सीमांकन करके भूलेख में पंजीकृत किया जाय। नदियों को पुनः पूर्ण प्रवाह में लाने के लिये विशेज्ञों की टीम गठित की जाय। उन्होंने पिछले गंगा समग्र के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं आये थे। उन्होंने हर स्तर पर सहयोग का आश्वासन दिया है लेकिन बिना नागरिकों के भागीदार बने कोई सरकार और समाज अपने सृजनात्मक लक्ष्य को आसानी से प्राप्त नहीं कर सकते।

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