खबर दृष्टिकोण संवाददाता शिवम मिश्रा
लखीमपुर खीरी।धूप की तपिश जब असहनीय हो चली, और पसीने से तरबतर श्रमिक अपनी रोटी की जद्दोजहद में मग्न रहे—ऐसे समय में एक नाम, एक चेहरा, एक भावना उन्हें राहत देने आगे आई—समाजसेवी मोहन बाजपेई।कोतवाली बड़ा चौराहा के पवित्र बाबा मनकामेश्वरनाथ धाम परिसर में, उन्होंने वह किया जो बड़े-बड़े वादों से अधिक असर रखता है—मानवता की सीधी सेवा।
लगभग 800 बोतलों में मीठे शर्बत का वितरण कर उन्होंने न केवल श्रमिकों की प्यास बुझाई, अपितु यह संदेश भी दिया कि सेवा का धर्म सबसे बड़ा होता है।
यह पहल कोई औपचारिक आयोजन नहीं थी, न ही किसी प्रचार की आकांक्षा थी—यह तो मात्र एक ‘मानवता की मौन पुकार’ पर दिया गया उत्तर था।
जहाँ एक ओर श्रमिक तपती धूप में जीविका के लिए पसीना बहा रहे थे, वहीं दूसरी ओर बाजपेई जी ने उनके श्रम को आदरांजलि स्वरूप शर्बत की मीठास में ढाल दिया।“सेवा, समर्पण और सहानुभूति—यही सच्चे समाजसेवक के आभूषण होते हैं।”
मोहन बाजपेई का यह कार्य इस उक्ति को यथार्थ रूप में स्थापित करता है।धाम परिसर गूंज उठा‘जय भोलेनाथ’ के उद्घोष से, और उन सैकड़ों मजदूरों की मुस्कुराहटों ने उस दिन को एक पावन पर्व का स्वरूप दे दिया।
