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हजरत सैयद सालार मसूद गाजी रह. की दरगाह की सालाना ठेके की प्रक्रिया पूरी, जानिए क्या है एतिहासिक स्थल का महत्व

 

 

 

 

 

(खबर दृष्टिकोण) बाराबंकी… तमाम तरह की अफवाहों के बीच बहराइच स्थित हजरत सैयद सालार मसूद गाजी रह. की दरगाह की गरगाह पर लगने वाला सालाना जेठ मेला और उर्स की तैयारियां शुरू हो गई हैं। मेले के लिए होने वाली याजदगाही, तहबाजारी के ठेके के लिए नीलामी की प्रक्रिया संपन्न हो गई है। इससे साफ हो गया है कि दरगाह पर होने वाला एतिहासिक मेला और सालाना उर्स अपने तय समय पर होगा।आपको बता दें कि संभल में उर्स की इजाजत ना दिए जाने के बाद से बहराइच के एतिहासिक मेले को लेकर भी अफवाहों का बाजार गर्म था। सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर तरह-तरह की कयास लगाए जा रहे थे। इस बीच ये भी अफवाह थी कि दरगाह की सालाना याजदगाही और तहबाजारी के ठेके की प्रक्रिया भी रद कर दी गई है। लेकिन इन तमाम अफवाहों और कयासों को खत्म करते हुए दरगाह कमेटी ने दोनों ठेकों की प्रक्रिया पूरी कर ली है। दरगाह कमेटी के सदर बक़ाउल्लाह की मौजदूगी में ठेके की नीलामी की प्रक्रिया पूरी हुई है। दरगाह कमेठी के मुताबिक 3 करोड़ रुपये में तहबाजारी और 3 करोड़ 46 लाख रुपए में याजदगाही का ठेका हुआ है। नीलामी की प्रक्रिया के दौरान LIU की टीम भी मौजूद रही है। आपको बता दें कि भारत में सूफी परंपरा और धार्मिक आस्था के कई केंद्र हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण स्थल सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह है, जो उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित है। यह दरगाह न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि यहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालु अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं। इस पवित्र स्थल से जुड़ी गाथाएँ, इसकी वास्तुकला और यहाँ मनाया जाने वाला उर्स, सभी इसे एक विशेष पहचान देते हैं। सैयद सालार मसूद गाजी: एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व सैयद सालार मसूद गाज़ी को गाज़ी मियां के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है, कि यह महमूद गजनवी के भतीजे और एक वीर योद्धा थे। जिन्होंने भारत में इस्लामी परंपरा को फैलाने में अहम भूमिका निभाई। किवदंतियों के अनुसार वह मात्र 16 वर्ष की उम्र में युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए, उनकी शहादत के बाद उनके सम्मान में यह दरगाह बनाई गई, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनी हुई है। यह दरगाह 11वीं शताब्दी से अस्तित्व में है, और समय के साथ इसका महत्व बढ़ता गया। यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों संप्रदायों के लोग श्रद्धा के साथ आते हैं, और मन्नतें मांगते हैं। इस दरगाह की दीवारें और स्थापत्य कला मध्यकालीन शैली की झलक प्रस्तुत करती है। जो इसे ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाती हैं। गाजी मियां का उर्स एक सांस्कृतिक संगम हर साल ज्येष्ठ माह में यहां भव्य उर्स का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। इस अवसर पर कव्वाली, सूफी संगीत, लोक नृत्य और पारंपरिक मेले का आयोजन किया जाता है। हिंदू मुस्लिम एकता का यह अनूठा उदाहरण भारतीय संस्कृति की गंगा जमुनी तहजीब को दर्शाता है

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