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Vanakkam Poorvottar: मणिपुर में शांति लाने की कोशिशों में सरकार जितनी आगे बढ़ती है, उपद्रवी उससे भी तेज़ी से अशांति फैलाने में लगे रहते हैं।

 

मणिपुर में एक बार फिर गंभीर जातीय हिंसा देखी जा रही है। बताया जा रहा है कि हिंसा का मुख्य कारण संदिग्ध आदिवासी उग्रवादी हैं। देखा जाये तो मणिपुर में हाल के हमलों ने विशेष रूप से इंफाल घाटी में तनाव को फिर से बढ़ा दिया है। देश मणिपुर के हालात को लेकर चिंतित है और उस समय का इंतजार कर रहा है जब राज्य में शांति पूर्ण रूप से बहाल होगी। मणिपुर में हिंसा के ताजा हालात को देखकर लोगों के मन में यह प्रश्न भी उठ रहा है कि आखिर शांति की ओर बढ़ता राज्य अचानक कैसे हिंसा के मार्ग पर चला गया? दरअसल हाल की कुछ घटनाओं को जोड़ कर देखें तो ऐसा लगता है कि हिंसा की आग को भड़काने में इन प्रकरणों ने काफी महती भूमिका निभाई।
शांति की ओर लौटते मणिपुर को फिर से अशांत करने और राज्य सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के उद्देश्य से एक ऑडियो क्लिप सामने आया। 6 अगस्त को सामने आये एक कथित ऑडियो क्लिप में एक समुदाय के बारे में कथित तौर पर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की आपत्तिजनक टिप्पणी थी। हालांकि इस संबंध में सरकार ने 8 और 20 अगस्त को दो आधिकारिक बयानों के साथ स्थिति को स्पष्ट करते हुए दावा किया कि रिकॉर्डिंग के साथ छेड़छाड़ की गई थी और इसका उद्देश्य सांप्रदायिक हिंसा भड़काना और शांति प्रक्रिया को बाधित करना था। लेकिन इस क्लिप के जरिये नुकसान हो चुका था और जनता का गुस्सा बढ़ गया था।
इसके अलावा, 12 अगस्त को राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कुकी-ज़ो जनजाति के एक उपसमूह, थडौ समुदाय के साथ शांति वार्ता की योजना की जो घोषणा की उसे भी विफल करा दिया गया। मुख्यमंत्री के विधानसभा में किये गये ऐलान के दो दिन बाद ही थडौ जनजाति परिषद-जनरल मुख्यालय ने मुख्यमंत्री के बयान को खारिज करते हुए इसे “आधारहीन” बताया और कहा कि उनकी भागीदारी के बिना कोई भी बातचीत “अमान्य” होगी। इसके बाद, 27 अगस्त को अज्ञात बंदूकधारियों ने चुराचांदपुर जिले में थाडौ समुदाय के सदस्य और भाजपा प्रवक्ता टी माइकल लामजाथांग हाओकिप के आवास पर हमला किया। मुख्यमंत्री ने इस हमले को “राज्य की एकता और अखंडता के लिए सीधी चुनौती” बताया। लेकिन मुख्यमंत्री के कड़े बयान की परवाह नहीं करते हुए एक सप्ताह बाद, हाओकिप के पैतृक घर में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। इसके बाद 30 अगस्त को, बीरेन सिंह ने केंद्र सरकार के समर्थन से “पांच से छह महीने” के भीतर सामान्य स्थिति बहाल करने का वादा किया और नागा भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई को कुकी-ज़ो और मैतेई प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के लिए एक दूत के रूप में नियुक्त किया। लेकिन इसके ठीक बाद यानि 31 अगस्त को, कुकी-ज़ो समुदाय के सदस्यों ने ‘कुकीलैंड’ के लिए एक अलग प्रशासन की मांग करते हुए और सीएम की विवादास्पद टिप्पणियों वाले वायरल ऑडियो क्लिप के विरोध में तीन रैलियाँ आयोजित कीं।
इसके बाद, 1 सितंबर को हिंसा तब बढ़ गई जब संदिग्ध आदिवासी उग्रवादियों ने इम्फाल पश्चिम जिले के गांवों पर विस्फोटक गिराने के लिए ड्रोन का उपयोग करके हवाई हमले किए। इसमें दो ग्रामीणों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। उन्नत आग्नेयास्त्रों का उपयोग करके उग्रवादियों द्वारा कौट्रुक गांव को निशाना बनाया गया। अगले दिन, एक और ड्रोन हमले में इंडिया रिजर्व बटालियन के तीन बंकर क्षतिग्रस्त कर दिये गए। इसके बाद 6 सितंबर को संदिग्ध आतंकवादियों ने बिष्णुपुर में रॉकेट हमले किए, जिसमें 70 वर्षीय एक पुजारी की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए। इसके बाद 7 सितंबर को जिरीबाम में गोलीबारी में छह और लोग मारे गए, जिसके बाद सरकार को निगरानी के लिए सेना के हेलीकॉप्टर तैनात करने पड़े। इस स्थिति को देखते हुए सीएम के दामाद और बीजेपी विधायक आरके इमो सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर मणिपुर में तैनात 60,000 केंद्रीय बलों पर सवाल उठाये। उन्होंने बढ़ती हिंसा के दौरान केंद्रीय बलों पर “मूक दर्शक” बने रहने का आरोप लगाते हुए उन्हें बदलने का आह्वान किया। इस बीच, इंफाल में छात्र सड़कों पर उतर आए और कानून एवं व्यवस्था का नियंत्रण राज्य सरकार को सौंपने की मांग की। देखा जाये तो स्थिति अस्थिर बनी हुई है तथा राज्य और केंद्र दोनों सरकारों पर संकट को हल करने और मणिपुर में शांति बहाल करने का दबाव बढ़ रहा है। इन सब घटनाओं से एक चीज और स्पष्ट होती है कि जैसे ही सरकार शांति की दिशा में कोई कदम उठाती है उसे विफल करने के लिए अदृश्य शक्तियां एकदम सक्रिय हो जाती हैं।

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