खबर दृष्टिकोण सुनील मणि लखनऊ के नगराम क्षेत्र स्थित जवाहरलाल नेहरू इंटर कॉलेज में संविधान शिल्पी बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती की पूर्व संध्या पर उनका स्मरण किया गया।
कार्यक्रम का प्रारंभ विद्यालय के प्रधानाचार्य अनिल कुमार वर्मा एवं शिक्षक शम्भू दत्त द्वारा बाबा साहब के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पण करके हुआ।
बाबा साहब के कार्यों को याद करते हुए शिक्षक अमित कुमार ने बताया कि तत्कालीन समाज में छुआछूत और अंधविश्वास से समाज पूरी तरह से जकड़ा हुआ था। उस समय अंग्रेजों का शासन था। गरीबी और सामाजिक समस्याओं से जूझते हुए भी इन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की तथा आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भी गये। इनकी पढ़ाई में कोल्हापुर के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज का विशेष सहयोग रहा। बाबा साहब की विधाता पर प्रकाश डालते हुए शिक्षक प्रेम कुमार ने बताया कि उनकी प्रतिभा को देखते हुए संविधान को बनाने का जमा बाबा साहब को दिया गया । कहने को तो संविधान के निर्माण में कई लोगों का योगदान रहा परंतु प्रमुख कार्य और इसका ढांचा तथा ज्यादातर प्रावधान बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के प्रयासों का परिणाम हैं इनके नेतृत्व में संविधान का निर्माण करने के लिए संविधान सभा के सदस्य कई देशों में गए और वहां के कानून व्यवस्था संविधान का अध्ययन किया तत्पश्चात बाबा साहब की प्रमुख भूमिका में संविधान का निर्माण 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में पूर्ण हुआ दुनिया भर का सबसे बड़ा यह इकलौता संविधान है जिसकी प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है और संविधान ने देश के प्रत्येक जाति वर्ग के विकास और उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया है।
विद्यालय के प्रधानाचार्य अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि बाबा साहब ने पढ़ाई और योग्यता के बल पर विश्व में अपना और अपने देश का नाम रोशन किया। इनकी योग्यता को देखते हुए भारत की प्रथम सरकार में इन्हें कानून मंत्री बनाया गया ।जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई: अम्बेडकर जाति व्यवस्था के मुखर आलोचक थे और उन्होंने इसके खिलाफ अथक संघर्ष किया। जाति व्यवस्था से बचने के उपाय के रूप में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। अंबेडकर ने सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए काम किया, खासकर दलितों जैसे समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए।
अम्बेडकर शिक्षा की शक्ति में विश्वास करते थे और लोगों को खुद को सशक्त बनाने के तरीके के रूप में खुद को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। अम्बेडकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख नेता थे और बाद में भारत के पहले कानून मंत्री बने।
अम्बेडकर ने समाज के बहिष्कृत और हाशिए पर रहने वाले वर्गों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए इस संगठन की स्थापना की।
जाति व्यवस्था से बचने और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में, अंबेडकर ने 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।
अम्बेडकर एक विपुल लेखक थे और उन्होंने कई किताबें प्रकाशित कीं, जिनमें “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” और “व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स” शामिल हैं।
ये भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में डॉ. अम्बेडकर के कई योगदानों के कुछ उदाहरण हैं। उन्हें सामाजिक न्याय और समानता के चैंपियन के रूप में याद किया जाता है और उनकी विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक कर्मचारी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
