खबर दृष्टिकोण संवाददाता /रफीक खान
पसगवां खीरी।आज भारत के पिछड़े समुदाय,(गैर यादव) दलितों और मुसलमानों में तेजी के साथ एक नई दरार पैदा हो रही है। यह समूचा वंचित समुदाय धीरे-धीरे अपने फ़ौरी पाँच किलो अनाज के स्वार्थ के पाश से मुक्त हो, अपनी अकुंठ चाहत की पार्टी की तलाश में उतर रहा है। पूंजीपतियों की दलाल सत्ता के खिलाफ पूरी बुलंदी से वंचितों के उत्थान की आवाज को उठाने वाला वीर योद्धा ढूढने में लगा हैं।
जन मानस में उभर रही यह नई दरार साफ तौर पर एक गहरे बदलाव का संकेत है। आगामी चुनाव में वह अनेक रूपों में सामने आयेगा।यही चुनाव नही 2027 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव में ये वंचित समाज अपने नायक की तलाश में जुट गया क्योंकि मौजूदा विपक्ष से इन शोषितो की उम्मीद पूरी होती नजर नही आ रही ये मौक़ा है उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई पार्टी या नए कलेवर की पार्टी अति पिछड़े,दलित , मुस्लिम को जो राजनैतिक ही नही सामाजिक आधार पर भी मुख्यधारा में ला सके अगर कोई पार्टी ऐसा करने में समर्थ नही होती तो असम गढ़ परिषद,या आम आदमी पार्टी जैसी कोई ताकत को उभरने का स्थान रिक्त है अगर ऐसा होता है तो गठन के मात्र कुछ दिनो में वो उत्तर प्रदेश में भाजपा और विपक्ष की मिलीभगत के इतर एक नई ताक़त बन कर उभरेगी जिसके साथ न ही सत्ता का भ्रष्टाचार न ही कोई और आरोप लगा पाएंगे नई पार्टी भाजपा की 70 वर्ष पुरानी बहसों को भी विफल कर देगी।इस देश में वाई एस आर कांग्रेस,बी आर एस, आम आदमी पार्टी ,असम गढ़ परिषद के उदाहरण है हाल ही में त्रिपुरा में एक पूर्व आई पी एस की पार्टी जो गठन के 4 साल में ही सत्ता पर काबिज हो गयी उत्तर प्रदेश में विकल्पहीन राजनीति हो रही है एक तरफ भाजपा दूसरी तरफ कोई नही और जो हैं वो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भाजपा से मिले हुए है न ही कोई राजनितिक विचारधारा न ही कोई स्थायी रणनीति ऐसे में जनता को नायक चाहिए और जब जनता नायक ढूंढती है तो बहुत ही आसानी से वो किसी को भी अपना नायक मान लेती है बस ताज़ा चेहरा हो संजय सिंह को अगर जेल न होती तो शायद उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हालात बदल गए होते खैर इंतेज़ार है जनता को अपने नायक का अब देखते है 2024 के चुनाव का पैटर्न दर्शा रहा है कि जनता सपा बसपा कांग्रेस किसी से खुश नही न ही सत्ता पक्ष से खुश हालांकि इस बार जनता भाजपा (एनडीए)और इंडिया में शामिल दलो से खुश नही दिखाई पड़ती ऐसे में बसपा को संजीवनी मिलने की पूरी उम्मीद के साथ ही अगर बसपा प्रमुख अपनी पारंपरिक राजनीति से आधुनिक राजनीति के अनुसार खुद में बदलाव करती है तो बसपा को 2024 में फायदा हो सकता है।और अगर ऐसा नही हुआ तो ऐसे में एक नए विकल्प के लिए विकल्प खुले हुए है ।क्या राजनैतिक दल इस स्थित को भांप नही पा रहे या जान बूझ के अनदेखी कर रहे है परिणाम एक दो वर्षों में सामने होंगे ।।
हमें तो सिर्फ़ जगाना है सोने वालों को।
जो दर खुला है वहाँ हम सदा नहीं देंगे।
रिवायतों की सफ़ें तोड़ कर बढ़ो वर्ना।
जो तुम से आगे हैं वो रास्ता नहीं देंगे।