एक्ट्रेस तुनिषा को आत्महत्या के लिए उकसाने के केस में समझौते की गुंजाइश नहीं
टीवी एक्ट्रेस तुनिषा शर्मा के सुसाइड मामले में जांच जारी है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया है कि उसकी मौत दम घुटने की वजह से हुई। सोमवार को तुनिषा की मां वंदना शर्मा ने कुछ और खुलासे किए। मां ने बताया कि तुनिषा ने आत्महत्या से एक दिन पहले मुझसे कहा था- मेरे दिल में एक बात है जो आप को बतानी है, मुझे शीजान चाहिए। इससे पहले तुनिषा की मां ने FIR में बताया था कि तुनिषा और शीजान मोहम्मद खान रिलेशनशिप में थे और 15 दिन पहले ही ब्रेकअप हुआ था।
शीजान मोहम्मद खान को जिस उकसाने के कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है, वो आखिर है क्या?
इंडियन पीनल कोड यानी IPC के सेक्शन 306 के मुताबिक, कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है और उसे यदि किसी ने इसके लिए उकसाया है तो उसे कानून के जरिए दंड दिया जा सकता है।
आरोप सिद्ध होने पर दोषी को अधिकतम 10 साल जेल और जुर्माना हो सकता है। आम तौर पर दोषी से वसूला गया जुर्माना मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता के तौर पर दिया जाता है।
IPC में आत्महत्या के लिए उकसाने वालों को लेकर सेक्शन 108 में विस्तार से बताया गया है। सुसाइड के लिए उकसाना हो या उकसाने की साजिश में शामिल होना ये सबकुछ भारतीय कानून में अपराध है।
अंग्रेजों के समय में सती प्रथा को रोकने के लिए IPC में इस कानून को शामिल किया गया था। विवाह और दहेज उत्पीड़न से जुड़े क्रूरता के मामलों में इस कानून के तहत अधिकांश मामले दर्ज होते हैं।
कोर्ट किसी की मंशा कैसे तय कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि किसी ने कह दिया कि ‘जाओ और मर जाओ’ और वह व्यक्ति मर गया तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता। इससे साफ है कि किसी को गुस्से में या झल्लाहट में कुछ कह देना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है। इस तरह के मामले में किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
ऐसे मामले में आरोपी की मंशा देखी जाएगी। उसका सामान्य बर्ताव देखा जाएगा। यदि हमेशा वह इसी तरह के शब्द बोलता रहा हो तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ मामले में 2001 में उकसाने या उत्तेजित करने की व्याख्या की थी। सुप्रीम कोर्ट ने एम. मोहन मामले में 2011 में कहा कि उकसाने में उकसावे की मनोवैज्ञानिक बातचीत या जानबूझकर किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना शामिल होता है। अमलेन्दु पाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धी के लिए उकसाने और आत्महत्या के बीच सीधा संबंध होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एम. आर. शाह और कृष्ण मुरारी ने मैरियानो मामले में अक्टूबर 2022 में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। दहेज प्रताड़ना से महिला की आत्महत्या के मामले में ससुराल वालों को अदालत ने IPC की धारा-306 के अभियोग से बरी कर दिया। फैसले में कहा गया है कि दोषी करार देने के लिए आत्महत्या और उकसाने के बीच सीधा संबंध होना जरूरी है। ऐसे मामलों में आरोप को सिद्ध करने की पूरी जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की है। हर मामले में तथ्य और गुणदोष के आधार पर आरोपी लोगों की मंशा के साथ भूमिका का आकलन जरूरी है, जिसकी वजह से किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है।
डिस्क्लेमर : आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है। अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं। आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए।