1952 से विलुप्त घोषित चीतों की प्रजाति को पुनर्जीवन के लिए प्रस्थापन का ऐतिहासिक मिशन शुरू
पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 का गंभीरता से पालन ज़रूरी – एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया – सृष्टि रचनाकर्ता ने इस खूबसूरत सृष्टि की रचना में जैव विविधता संतुलन का सृजन कर हर जीव की सुरक्षा रक्षा का पूरा लेखा-जोखा कर पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करके सृष्टि में जंगली जानवरों, पशु पक्षियों पौधों की अनेक प्रजातियों सहित 84 लाख़ योनियों का सृजन किया हैं कि हर योनि को जीवन जीने की सुविधा हो परंतु हम सबसे बुद्धिमान मानवीय जीव जैव विविधता संतुलन को बिगाड़ने और अनेक वन्य जीव प्राणियों को विलुप्त करते पेड़ पौधों को काटते जा रहे हैं जो हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत ही भयंकर त्रासदी का कारण बन सकता है। चूंकि 1952 से विलुप्त प्राणी घोषित चीतों की प्रजाति के पुनर्जीवन के लिए नामीबिया दक्षिण अफ्रीका से प्रस्थापन के ऐतिहासिक मिशन के अंतर्गत 8 चीतों को भारत लाया गया है, और संयोग से माननीय पीएम महोदय का जन्म दिवस 17 सितंबर 2022 पर उनके हाथों एमपी के कूनो नेशनल पार्क में भारत की धरती पर आजाद किया जहां एक बार फिर चीतों की आहट सुनाई देगी इसलिए आज हम यह आर्टिकल के माध्यम से इसपर चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम चीतों की करें तो, एक समय में भारत में खूब चीते थे, लेकिन हम मानवीय जीवों ने उनका इतना शिकार किया कि वो कम होते चले गए। जंगलों की कटाई और आवास की कमी भी चीतों के खत्म होने का बड़ा कारण बना। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में देश में अंतिम तीन चीतों को मार डाला था, जिसके बाद भारत सरकार ने 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित मान लिया था। एक्सपर्ट्स के मुताबिक चीते पारिस्थितिक तंत्र के लिए बेहद जरूरी है, इनका नहीं होना प्रकृति के लिए नुकसानदेह है। भारत में चीतों के न रहने के लिए असंख्य कारण जिम्मेदार रहे हैं, जिनमें पथ -निर्धारण, इनाम और शिकार के खेल के लिए बड़े पैमाने पर जानवरों को पकडऩा, पर्यावास में व्यापक बदलाव और उसके परिणामस्वरूप उनके शिकार के आधार का सिकुडऩा जैसे कारण शामिल हैं। ये सभी कारण मानव की कार्रवाइयों से प्रेरित हैं, और सिर्फ यह एक बात प्रतीक है प्राकृतिक दुनिया पर मनुष्य के पूर्ण प्रभुत्व की कोशिशों का। इसलिए जंगल में चीते की दोबारा वापसी एक पारिस्थितिकीय गलती को सुधारने और माननीय पीएम द्वारा दुनिया को दिए गए मिशन ‘लाइफ’ (लाइफस्टाइल फॉर द इनवायरनमेंट) के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम है।
साथियों चीतों के विलुप्त होने के बाद भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब हुई थी। दरअसल, चीता फूड चेन में सबसे ऊपर आता है, इसके न होने से फूड चेन का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ रहा है। चीतों की अहमियत को समझते हुए भारत सरकार ने तय किया था कि उन्हें देश में फिर से बसाया जाएगा। इसके तहत 1970 के दशक में एक खास योजना पर काम शुरू किया गया था। भारत की पहल पर ईरान का शाह भारत को चीते देने के लिए तैयार हो गया था, लेकिन उसने बदले में शेर की मांग की थी, भारत ने इस शर्त को नहीं माना और चीते भारत नहीं आए थे।
साथिया बात अगर हम नामीबिया से 17 सितंबर 2022 को लाए गए 8 चीतों की करें तो, इन्हीं आठ चीतों को लाने के लिए चीतों की तस्वीर वाला एक विशेष रूप से तैयार बोइंग 747-400 विमान नामीबिया भेजा गया था। इस स्पेशल विमान पर चीतों की खूबसूरत पेटिंग की गई थीं। इसी विमान की तस्वीर के साथ नामीबिया स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया, ‘बाघों की धरती से सद्भावना राजदूत ले जाने के लिए शौर्य की धरती पर उतरा एक विशेष पक्षी’। इस ट्वीट को जबर्दस्त सराहना मिल रही है और लोग उत्साहित हैं।नामीबिया से भारत लाए गए आठ चीतों से तीन नर और पांच मादा हैं। नर चीतों में से दो की उम्र साढ़े पांच साल और एक की साढ़े चार साल है। नर चीतों में दो भाई हैं जो नामीबिया में ओत्जीवारोंगो के पास 58 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले निजी अभयारण्य में जुलाई, 2021 से रह रहे हैं। यह पहली बार होगा जब किसी मांसाहारी पशु को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप लाया गया है। 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने नामीबिया से चीता लाने को हरी झंडी दे दी थी। फिलहाल इस पूरी परियोजना के लिए सरकार 91 करोड़ का बजट निर्धारित किया है।
साथियों बात अगर हम चीतों को जाने वाले खास विमान की करें तो, खास विमान पर बनाई गई खास पेंटिग नामीबियामें भारत के उच्चायोग ने ट्विटर पर इस स्पेशल विमान की तस्वीरें शेयर भी की है। जहां विमान की नाक पर चीते की पेंटिंग बनाई गई है। एयरलाइन कंपनी की तरफ से इस फ्लाइट को स्पेशल फ्लैग नंबर 118 दिया गया है। वहीं विमान में चीते की एक पेंटिंग भी लगाई गई है। जंगल के सबसे तेज और शानदार शिकारी चीता को नामीबिया से भारत लाने पर नागरिक गर्व और उत्सुकता महसूस कर रहे हैं। चीता की करीब 8 हजार किलोमीटर की हवाई यात्रा का इंतेजाम किसी वीवीआइपी की तरह किया गया था। इसके लिए चीता कंजर्वेशन फंड द्वारा एक विशेष डबल डेकर बोइंग 747-400 विमान की व्यवस्था की गई थीं, जिसमें इकोनॉमी क्लास की पैसेंजर सीट हटाकर चीतों के लिए स्पेशल क्रेट बनाया गया था, इसी विमान से चीता की देखभाल के लिए विशेषज्ञों की टीम भी भारत तक साथ रही।
साथियों बात अगर हम भारत में चीतों के विरुद्ध युद्ध के इतिहास की करें तो, बता दें कि कभी भारत चीतों का गढ़ माना जाता था। इनकी संख्या इतनी थी कि चीतों का शिकार करनाराजघरानों का शौक हो गया था। लेकिन राजघरानों की इस शौक की वजह से धीरे-धीरे चीतों की प्रजाति यहां से लुप्त हो गई। पुरानी तस्वीरों के आधार पर बताया जाता है के मुगल शासन काल में शासक के महल में दस हज़ार चीतों को पाला जाता था आम व्यक्तियों द्वारा भी चीतों को पालतू जानवर की तरह पाला जाता था । लेकिन अब लगभग 70 साल बाद एक बार फिर वो ऐतिहासिक क्षण आ रहा है जब हमारे देश में चीते होंगेअब उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हर नागरिक की होगी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, मिशन चीता, आओ वन्यजीवी प्राणियों को विलुप्तता से बचाएं। 1952 से विलुप्त प्राणी घोषित चीतों की प्रजाति को पुनर्जीवन के लिए प्रस्थापन मिशन शुरू। पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 का गंभीरता से पालन करना जरूरी हो गया हैं।
*संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*