ख़बर दृष्टिकोण संवाददाता राकेश गुप्ता
लखनऊ। माँ… जिसने अपने जीवन के अनगिनत वर्षों को अपने बच्चों की परवरिश में लगा दिया, जब वही माँ जीवन की सांझ में अपने बेटों के सहारे की उम्मीद कर रही थी, तो उसे अकेला छोड़ दिया गया। डेढ़ महीने से अस्पताल के बिस्तर पर लावारिस हालत में पड़ी एक बुज़ुर्ग महिला न जाने कितनी ही रातें अपने बच्चों का इंतज़ार करते हुए जागकर बिता चुकी थी। आँखों का इलाज कराने आई थी, लेकिन अपने ही बेटों की बेरुख़ी ने उनके दिल को और ज़्यादा बीमार कर दिया था।
जब अपनों ने मुँह मोड़ लिया, तब लखनऊ पुलिस ने इंसानियत का फ़र्ज़ निभाया। हज़रतगंज पुलिस की सतर्कता और संवेदनशीलता ने एक लावारिस पड़ी बुज़ुर्ग माँ को उसके बेटों से मिलवाकर एक अनकही पीड़ा का अंत किया।
बीते रविवार को जब बुजुर्ग महिला हज़रतगंज पुलिस स्टेशन पहुँची, तो उनके शब्द काँप रहे थे, लेकिन उम्मीद की एक आखिरी किरण अब भी थी। उन्होंने कांपते हाथों से पुलिसकर्मियों को अपनी तकलीफ बताई—”बेटा इलाज कराने लाया था, दो दिन में आँखें ठीक भी हो गईं, लेकिन वह लेने ही नहीं आया। न मैं घर का पता जानती थी, न किसी का नंबर। मैं बस इंतज़ार करती रही… पर कोई नहीं आया।”
पुलिसकर्मियों की आँखों में भी उस माँ के दर्द की गहराई झलक रही थी। थाना प्रभारी विक्रम सिंह ने तुरंत महिला पुलिसकर्मियों को बुलाकर मामले की जाँच शुरू करवाई। बुज़ुर्ग माँ की दयनीय हालत और उनकी आँखों में उम्मीद की आखिरी लौ देखकर पुलिस ने उनकी पूरी मदद करने की ठानी।
खोए हुए बेटे मिले, पर ममता के आँसू सूख चुके थे
जाँच के बाद पुलिस ने बुज़ुर्ग महिला के दोनों बेटों का पता लगाकर उन्हें थाने बुलाया। जैसे ही वे थाने पहुँचे, उनकी माँ की आँखों से आँसू बहने लगे, पर उन आँसुओं में अब सिर्फ़ पीड़ा थी, शिकायत थी। पुलिस ने बेटों को कड़ी फटकार लगाई और उन्हें अपनी माँ की जिम्मेदारी निभाने की सख्त हिदायत दी। आदेश दिया गया कि वे हर 15 दिन में अपनी माँ की कुशलता की सूचना पुलिस को देंगे।
जब वह बुज़ुर्ग माँ अपने बेटों के साथ थाने से निकलीं, तो उनकी आँखों में राहत तो थी, लेकिन जो दर्द उन्होंने इन डेढ़ महीनों में सहा था, वह शायद कभी कम नहीं हो सकता। बेटे उन्हें घर तो ले जा रहे थे, लेकिन क्या उनका दिल सच में माँ के लिए धड़क रहा था? इस सवाल का जवाब शायद वक्त ही देगा।
थाना प्रभारी विक्रम सिंह और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि पुलिस न सिर्फ़ क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए होती है, बल्कि समाज में इंसानियत और नैतिक मूल्यों को भी बचाए रखने का काम करती है। इस मामले में पुलिस ने न केवल कर्तव्यनिष्ठा का परिचय दिया, बल्कि संवेदनशीलता के साथ यह भी दिखाया कि वह जनता के असली रक्षक हैं।
लखनऊ पुलिस के इस मानवीय प्रयास की जितनी सराहना की जाए, उतनी कम है। यह मामला एक मिसाल है कि जब परिवार अपनी ज़िम्मेदारियाँ भूल जाए, तो पुलिस सिर्फ़ क़ानून का ही नहीं, इंसानियत का भी सहारा बन सकती है।
