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अपने पर आई तो पूरा भारत बंद, आखिर क्यों?

 

 

अतुल कुमार श्रीवास्तव, खबर दृष्टिकोण

 

बाराबंकी। कोलकाता आईजी मेडिकल कॉलेज की डॉक्टर का रेप और फिर हत्या… पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर से लेकर पैर तक कोई भी अंग सुरक्षित नहीं, जहां जख्म ना रहा हो। मृतका के शरीर में 150 मिलीग्राम वीर्य का मिलना बताता है कि एक नहीं यह कृत्य कई राक्षसों की हैवानियत का परिणाम है। घटना दिल दहलाने वाली है जो मानवता जगत को शर्मसार कर रही है। इसके विरोध में संपूर्ण भारत में बड़ी संख्या में डॉक्टर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आज शनिवार को पूरे भारत के डॉक्टर ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के नेतृत्व व आह्वान पर 24 घंटे की हड़ताल कर दी है, एसोसिएशन ने कहा है कि इस दौरान आपातकालीन सेवाएं जारी रहेगी। आज के दौर में प्रशासन और सरकार की उदासीनता सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही नहीं लगभग देश के हर प्रांत में देखने को मिलती है; जो प्रमाणित करती है कि सरकारें लगभग पूंजीपतियों/ शोषकों के लिए के लिए काम करती हैं, जो लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक है… मानवता के खिलाफ है और यह गलत है।

डॉक्टर के साथ हुई घिनौनी और अमानवीय घटना कि मैं भरकश निंदा करता हूं सरकार जिम्मेदारी लेते हुए जांच एजेंसियां नियुक्त कर दोषियों को संवैधानिक आधार पर पर कड़ी से कड़ी सजा दे।

एक मौत से संपूर्ण भारत में चिकित्सीय सेवाएं बंद करने वालों से सिर्फ और सिर्फ एक सवाल है कि क्या इतनी तन्मयता… उसके हाथों से.. उसकी निगरानी में… पैसों के अभाव में… अस्पताल के फर्श पर पड़े मरीज को लेकर भी दिखाई गई है क्या? क्या आपके पास आने वाले खुशी से आपको परेशान करते हैं जिससे मौका आने पर आप लोगों द्वारा जानवरों से भी बुरा बर्ताव किया जाता है तब क्या मानवता की मौत नहीं होती? आपके शौक कुत्ते को गाड़ी में… गोद में घूमने के हो सकते हैं, जो इन्हीं मरीजों के दिए गए पैसों से… टैक्स से पूरे होते हैं, लेकिन सीधे मुंह इन मरीजों से आप सभी को बात करना नहीं भाता। पर्याप्त परामर्श शुल्क लेने के बाद भी दवाओं के नाम पर कंपनियों से समझौता, जांच का खेल जो पूरी तरह से बंदर-बांट पर आधारित होता है तब आप सभी की आत्मा कहां मर जाती है?

कलकत्ता में घटने वाली घटना सिर्फ एक डॉक्टर के साथ ही नहीं घटित हुई बल्कि पूरी मानवता को शर्मसार करने वाली है। यह घटना हमारे समाज पर एक प्रश्न चिन्ह लगती है, एक सवालिया निशान है कि क्या यही हमारी पहचान रह गई है? क्या हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारी परवरिश इतनी अपंग हो गई है कि हम इंसान को इंसान ना समझें?

हमारा यह सवाल सिर्फ समाज के आम जनमानस से ही नहीं बल्कि चिकित्सा जगत में कार्यरत 90% लोगों से भी है की जिसे हम आम इंसानों ने भगवान का दर्जा दिया है वह पैसों की लालच में इतना निर्दयी और उदासीन कैसे हो सकता है? आज जो समाज ऐसी निंदनीय घटना पर इतना उद्वेलित और विचलित है अस्पताल में कार्यावधि के दौरान क्यों नहीं होता? क्यों उसे मरीजों में इंसान नहीं नजर आता…क्यों इंसानों द्वारा देवता की उपाधि लेने वाला सिर्फ और सिर्फ लक्ष्मी के श्री चरणों में ही रहना चाहता है? क्यों वह नंदी स्वरूपा गौ माता बनकर अपने कर्तव्यों का, अपनी जिम्मेदारियों के लिए सदैव तत्पर क्यों नहीं रहता? क्यों वह अपनी गरिमामई छवि को मिट्टी में मिलने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ता…आखिर क्यों? अपने या अपनों पर आई तो आप सब ने पूरे भारत की चिकित्सा सेवाएं बंद कर दी, आम इंसान या मरीज पर आए तो इसका विरोध खत्म करने के लिए मेडिको लीगल एक्ट का सहारा ले लेना कितना सही है? मरीज या तीमारदार पहले ही आपसे मिलने के बाद आपके चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। उनका अपनी बात रखना, अपनों के हितों के बारे में सोचना क्या गलत है? यदि मरीज और उनके तिमारदारों का अपनी विवशता जाहिर करना, आपकी गलत नीतियों का विरोध करना गलत है तो आपका बंद भी गलत है… उस मृतका के लिए और उसके परिवार के लिए सरकार है, संविधान है और हम सब हैं।

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