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बिना सत्संग के न विवेक हासिल होता है और न ही बैराग्य जाग्रत होता:मनोज शास्त्री

 

खबर दृष्टिकोण

सिधौली/सीतापुर। स्थानीय नगर के प्रसिद्ध श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे श्री सिद्धेश्वर रुद्र महायज्ञ भक्ति ज्ञान संत सम्मेलन में तृतीय दिवस पर संत विद्वानों के द्वारा श्रोताओं को प्रवचन श्रवण कराये।आचार्य अनिल मिश्रा बाराबंकी के द्वारा यजमान सुनीता मिश्रा पत्नी उत्तम मिश्रा के द्वारा यज्ञ मंडप में पूजन अर्चन किया गया उसके पश्चात कार्यक्रम का संचालन पंडित अवधेश मिश्रा शास्त्री के द्वारा किया गया सीतापुर से पधारे मनोज शास्त्री ने सत्संग में भक्तों को प्रवचन देते हुए कहा कि बिना सत्संग के न विवेक हासिल होता है और न ही बैराग्य जाग्रत होता है। सत्संग से ही मानव को सत्कर्म करने की प्रेरणा भी मिलती है इसलिए सभी को सत्संग जरूर करना चाहिए। प0 महेन्द्राचार्य जी ने कहा कि सत्संग से ही मनुष्य के स्वभाव में सरलता,वाणी में मधुरता और चरित्र में सज्जनता के साथ ही वीरता,परोपकार, देशप्रेम,निस्वार्थ सेवा जैसे मानवीय गुण भी पैदा होते है। सत्संग के प्रभाव से ही रत्नाकर डाकू भी प्रकाण्ड विद्वान बाल्मीकि बन गये और विश्वस्तरीय काव्यग्रन्थ रामायण की रचना की आज यही रचना हिन्दू धर्म ग्रन्थों की आत्मा के समान है वहीं दूसरी तरफ कौरवों को सत्संग नसीब नहीं हुआ इसलिए पाण्डवों की बात नहीं माना फलस्वरूप विश्व प्रसिद्ध युद्ध महाभारत भी हुआ इससे युद्ध होता है कि सत्संग के जरिए मानव समाज में तमाम मानवीय गुणों को पैदाकर विश्व को आज भी शान्ति का सन्देश दिया जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में लिखा है कि ‘बिनु सत्संग विवेक न होई’ जबकि कुसंगति से मानव समाज बरबादी की ओर जाता है जिससे समाज में अनेक बुराईयां जन्म लेती है। वही पंडित राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि लड़की-लड़का के साथ समाज में हो रहे भेदभाव पर कड़ा प्रहार करते हुए भागवत कथा के अन्तर्गत श्राद्धदेव मनु महराज का उदाहरण देकर समझाया और भक्तों से लड़की-लड़का के बीच भेदभाव न करने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि धर्म सदैव मानव को नेकी की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है और मानस प्रवक्ता पं0 सरवन ने कहा कि मानवता समाज में कैसे कायम हो इसको भी प्रोत्साहित करता है।मानवता देश के लिए समृद्धि का प्रतीक है। तृतीय दिवस कार्यक्रम समापन पर यज्ञ समायोजक स्वामी प्रकाशानंद सरस्वती जी ने राम के नाम की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राम का नाम ही कलिकाल में जीव मात्र के लिए कल्याणकारी है। “एहि कलि करम न धरम विवेकू” इस कलियुग कर्म और धर्म से परे सत्कर्म से विमुख होता जा रहा है केवल राम नाम ही एक मात्र तारणहार है जीव को चाहिए शरीर रुपी साधन मिला है इसमें साध्य विराजमान है इसलिए सदैव इस शुद्ध रखते हुए परमात्मा का सतत् स्मरण, सुमिरन निरन्तर करते रहना चाहिए। इस अवसर पर कन्हैयालाल दीक्षित,उमेश, राहुल,अनूप,अरुण,सोनू, टिंकू, रोहित,रामप्रकाश,अभिनव, गिरिजा,जाग्रत,

पं0राजेन्द्र कुमार त्रिपाठी,रजनीश पाण्डेय,सुबोध अवस्थी श्रवण कुमार ,वेद मिश्रा,रामासरे पाण्डेय,शत्रुघ्न तिवारी,शिवसागर दीक्षित,हरी, ज्ञानेश,देवेश शुक्ला,विमल शुक्ल,अनुज मिश्रा, राधे राजपूत,रामनरेश जगदेव अजय,विजय व महिलाओं में पूजा,रोली,रोमी,सुनीता,कोमल,सीमा,पूनम,गुड़िया, सहित सैकड़ों भक्त उपस्थित रहे।

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