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कजाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात, अब तक 48 लोगों की मौत, रूसी सेना ने संभाला मोर्चा

हाइलाइट

  • कजाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात हो गए हैं और दंगाई पुलिसकर्मियों का गला रेत रहे हैं.
  • वहीं, पुलिसकर्मी भी प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग कर रहे हैं और अब तक 48 लोगों की मौत हो चुकी है.
  • देश की आर्थिक गतिविधियों के केंद्र अल्माटी में हिंसक प्रदर्शन जारी है।

अल्माटी
तेल संपन्न कजाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात बन गए हैं और दंगाइयों का गला रेत कर पुलिसकर्मियों की हत्या की जा रही है. वहीं, पुलिसकर्मी प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चला रहे हैं। अब तक कम से कम 48 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें कम से कम 18 पुलिसकर्मी शामिल हैं। देश के सबसे बड़े शहर और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र अल्माटी में हिंसक प्रदर्शन जारी है। राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकायेव ने प्रदर्शनकारियों को कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है.

बताया जा रहा है कि एक पुलिसकर्मी की सिर काटकर हत्या कर दी गई। इस बीच कजाकिस्तान में हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों ने दर्जनों प्रदर्शनकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी. वहीं, हिंसा में 18 पुलिसकर्मियों की भी मौत हो गई है। प्रदर्शनकारी सरकारी भवनों में घुस गए और उनमें आग लगा दी। प्रदर्शन के बाद सरकार ने भी इस्तीफा दे दिया है। मध्य एशियाई देश के सबसे बड़े शहर अल्माटी में प्रशासन की कड़ी प्रतिक्रिया के बावजूद प्रदर्शनकारी फिर से सड़कों पर उतर आए।
अब तक दो हजार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है
एक दिन पहले वे राष्ट्रपति भवन और मेयर कार्यालय में घुसे थे। कहा जाता है कि राजधानी नूर सुल्तान में शांति है। रूस की ‘स्पुतनिक’ समाचार सेवा ने बताया कि शहर में पुलिस कर्मियों को लगभग 200 लोगों की भीड़ ने घेर लिया, जिसके बाद उन्हें गोलियां चलानी पड़ीं। गृह मंत्रालय के मुताबिक अब तक दो हजार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. पुलिस प्रवक्ता सल्तनत अजिरबेक ने सरकारी समाचार चैनल ‘खबर-24’ को बताया कि बुधवार को कई हमलावर मारे गए।

कजाकिस्तान रूस

कजाकिस्तान में प्रदर्शनकारी जमकर हिंसा कर रहे हैं

खबर-24 ने गुरुवार को सिटी कमांडेंट के कार्यालय के हवाले से बताया कि 18 पुलिस अधिकारियों की मौत के अलावा 353 कानून प्रवर्तन अधिकारी घायल हुए हैं. तीन दशक पहले सोवियत संघ से आजादी मिलने के बाद से कजाकिस्तान को भयंकर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। एलपीजी ईंधन की कीमतों में भारी बढ़ोतरी को लेकर रविवार को शुरू हुए विरोध प्रदर्शन ने कजाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया है। देश के पश्चिम में शुरू हुए प्रदर्शन अल्माटी और राजधानी नूर-सुल्तान तक फैल गए। कथित तौर पर लाठी और ढाल लेकर हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं।

राष्ट्रपति ने अशांति खत्म करने का संकल्प लिया
एलपीजी का व्यापक रूप से वाहन ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। विरोध की तीव्रता देश में व्यापक असंतोष का संकेत है। 1991 में सोवियत संघ से आजादी के बाद से देश पर एक ही पार्टी का शासन रहा है। आर्थिक मुद्दों को दूर करने के प्रयास में, सरकार ने गुरुवार को वाहन ईंधन पर 180 दिनों की कीमत सीमा और उपयोगिता दरों में वृद्धि पर रोक लगाने की घोषणा की। राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायव विरोध प्रदर्शनों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने सरकार का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और वहां अशांति को खत्म करने का संकल्प लिया है। उन्होंने अशांति के लिए आतंकवादी समूह को जिम्मेदार ठहराया है।

अल्माटी और दूसरे शहर में हवाई अड्डा बंद है। रूसी नेतृत्व वाले गठबंधन सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) ने गुरुवार को कहा कि वह राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायव के अनुरोध पर कजाकिस्तान में शांति सैनिकों को भेजेगा। कजाकिस्तान अपनी उत्तरी सीमा रूस के साथ और पूर्वी सीमा चीन के साथ साझा करता है। सीएसटीओ के मुताबिक, रूसी सेना अब कजाकिस्तान पहुंच चुकी है। सीएसटीओ के सदस्य, किर्गिस्तान के राष्ट्रपति के प्रवक्ता एर्बोल सुतनबाएव ने कहा कि उनके देश की सेना संसद की मंजूरी के बाद जाएगी और प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई नहीं करेगी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने गुरुवार को इस बात से इनकार किया कि चीन मौजूदा संकट में शामिल होगा। उन्होंने कहा कि कजाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है वह उसका आंतरिक मामला है और वह इसे उचित तरीके से सुलझा सकता है।

न कोई नेता न प्रदर्शनकारियों की मांग
कजाकिस्तान के राष्ट्रपति टोकायव ने देश भर में दो सप्ताह के लिए आपातकाल की घोषणा की है, जिसके तहत रात का कर्फ्यू लागू रहेगा और धार्मिक प्रार्थनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसने कजाकिस्तान में रहने वाले रूढ़िवादी ईसाई आबादी को झकझोर दिया है, क्योंकि वे शुक्रवार को क्रिसमस मनाते हैं। ऐसा लगता है कि प्रदर्शनकारियों के पास कोई नेता या मांग नहीं है। कई प्रदर्शनकारियों ने देश के पहले राष्ट्रपति नूर सुल्तान नज़रबायेव की ओर इशारा करते हुए ‘बूढ़ों जाओ’ के नारे लगाए। उन्होंने 2019 में पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन उनका प्रभाव अभी भी बना हुआ है।

Source-Agency News

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