लखनऊ । हर चुनाव एक नया समीकरण लेकर आता है। कानून-व्यवस्था के जिस मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई थी, उसी मुद्दे पर उसके हमलावर तेवरों ने विपक्षियों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। चुनावी दंगल में हर कोई तगड़ा पहलवान तो उतारना चाहता है, लेकिन किसी बाहुबली का नाम लेने से हर किसी को परहेज है। विधानसभा चुनाव 2022 में आपराधिक छवि के नेताओं को लेकर फिलहाल सभी दल दूरी बना रहे हैं।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीरो टालरेंस की नीति के तहत भ्रष्टाचार व अपराध के विरुद्ध मुहिम चला रहे हैं। वह अपराधियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का संदेश देकर कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर विपक्ष पर हमला बोलने का कोई मौका भी नहीं छोड़ते। सीएम योगी व अन्य भाजपा नेता अपनी सभाओं में पिछले साढ़े चार साल में माफिया के खिलाफ की गई कार्रवाई का ब्योरा दे रहे हैं।बीते दिनों केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने महराजगंज की एक सभा में कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम सुनते ही अपराधियों के नींद में भी कांप उठते हैं। भाजपा के इन हमलावर तेवरों का परिणाम हैं कि विपक्षी दल भी जनता में माफिया संस्कृति के खिलाफ संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं। इसी कड़ी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने 10 सितंबर को मऊ के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को टिकट न देने की बात कही थी।बीएसपी चीफ मायावती ने ट्वीट कर कहा था कि बसपा आगामी विधानसभा चुनाव में किसी भी बाहुबली व माफिया को टिकट नहीं देगी। हालांकि उसी दिन आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) ने मुख्तार अंसारी को मनचाही सीट से चुनाव लड़ने का न्योता दे दिया था। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी मुख्तार का समर्थन किया था।वहीं 28 अगस्त को मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और गाजीपुर के मोहम्मदाबाद क्षेत्र से दो बार विधायक रहे सिबगतुल्ला अंसारी बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये थे। अब राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि सपा पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रभावशाली माने जाने वाले अंसारी परिवार का प्रयोग मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के लिए करेगी। हालांकि मुख्तार अंसारी को लेकर समाजवादी पार्टी ने अब तक कुछ स्पष्ट नहीं किया है।
