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दशम स्कंद श्रीमद्भागवत का हृदय है और गोपीगीत आत्मा है – श्री हरिओमजी महाराज

 

खबर दृष्टिकोण |

आलमबाग | श्रीमद्भागवत के संपूर्ण अक्षर वंदनीय और आचरणीय हैं लेकिन दशम स्कंद श्रीमद्भागवत कथा का हृदय व स्कंद के उत्तरार्द्ध मे वर्णित गरिमामयी गोपीगीत श्रीमद्भागवत की आत्मा है । यह परम पावन उदगार पूज्यपाद कथावाचक व्यास श्री हरिओम जी महाराज ने गुरुवार आकाश एंक्लेव सोसायटी वृंदावन योजना सैक्टर – 6ए के भव्य मंदिर परिसर मे आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन समधुर गोपीगीत गायन के बाद व्यक्त किये । पूज्य श्री हरिओम जी महराज ने बताया कि दशम स्कंद मे भगवान श्रीकृष्ण जी की ललित लीलाओं का बड़ा मनमोहक भक्ति रस पूर्ण अनुपम और हृदयग्राही वर्णन है । श्रीकृष्ण के उदात्त अलौकिक व ब्रह्मस्वरूप पुनीत चरित्र को उदभाषित करता हैं । दशम स्कंद मे रासलीला के मध्य जब श्रीकृष्ण अचानक अदृश्य हो जाते हैं तो गोपियाँ बड़े आर्त्त स्वर मे श्रद्धा और समर्पण भक्ति भाव से जो कर्णप्रिय प्रार्थना करती हैं उसे ही गोपीगीत के नाम से जाना जाता है । गोपीगीत की अपूर्व महिमा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इसके श्रवण मात्र से मनुष्य के अंतश मे छिपे सभी पाप और ताप समूल नष्ट हो जाते हैं और हृदय मे निर्मल भक्ति भाव का अमिट संचार हो जाता है । इस मौके पर मुख्य जजमान शरद कुमार निगम ने सोसाइटी अध्यक्ष आरएल शुक्ला, सोसायटी के प्रबंधक एमके सिंह समेत कॉलोनी वासियों व स्थानीय लोगों मुक्त कण्ठ और श्रद्धाभाव से प्रसंशा करते हुए कहा कि लोगों ने कथा की हर गतिविधि व व्यवस्था मे सहयोग देकर कथा को सफल बनाने में योगदान दे रहे हैं ।

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