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मौका मिले तो आसमान चूम सकती हैं बेटियां : शुभ्रा

 

लखनऊ साफ्टवेयर इंजीनियर और फिर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी के तौर पर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी विशेष सचिव चिकित्सा शिक्षा शुभ्रा सक्सेना का मानना है कि प्रकृति का सृजनात्मक स्वरूप महिलाओं को अगर बराबरी का मौका दिया जाये तो वे न सिर्फ सफलता के नये आयाम स्थापित कर सकती है बल्कि हर क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ट भूमिका के जरिये देश दुनिया में शांति और सदभाव को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।

यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडियेट परीक्षा परिणामों में लड़कियों का बोलबाला और हाल ही यूपीएसी परीक्षा की टाप थ्री रैंक में लड़कियों के जगह बनाने पर खुशी का इजहार करते हुये शुभ्रा ने  कहा कि जब जब लड़कियों को मौका दिया गया है, उन्होने लड़कों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर परिणाम दिये हैं। लड़कियों को सिर्फ बराबर के अवसर देने की जरूरत है। एक लड़की प्रकृति का सृजनात्मक रूप है। समाज और देश में स्थिरता का माहौल लाने के लिये इस सृजनात्मक शक्ति को बढाने की जरूरत है।

बोर्ड परीक्षाओं के मेधावियों को उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें देते हुये वर्ष 2009 की आईएएस टापर शुभ्रा ने कहा कि महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिये बिना देश दुनिया में स्थायी शांति और सौहाद्र का वातावरण स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्होने कहा कि प्रकृति संतुलन बना कर चलती है। जिस दिन अधिकारों और दायित्वों के प्रति पुरूष और महिला के बीच संतुलन बन जायेगा, उस दिन दुनिया में सिर्फ शांति और सदभाव का वातावरण होगा। हो सकता है कि इसमें कुछ दशक लग जायें या फिर एक सदी मगर एक न एक दिन यह होकर जरूर रहेगा। बस हमें इंतजार करना है।

खेल का मैदान हो, या फिर सैन्य बलों में मौका, या फिर इंजीनिरिंग,मेडिकल अथवा प्रशासनिक सेवा में काम करने की ललक, हर क्षेत्र में महिलाओं ने सफलता का परचम लहराया है। इन सबके बावजूद अभी भी कई परिवार ऐसे हैं जहां अभिभावक लड़कियों को बाहर शहरों में रह कर कोचिंग कराने में हिचक दिखाते है वहीं लड़कों के मामले में ऐसा नहीं है। अगर लड़कियों को लड़कों के बराबर सुविधायें दी जायें तो निश्चित रूप से वे तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं। इंजीनियरिंग की तैयारी लड़का तो बाहर शहर में अच्छी कोचिंग में कर सकता है मगर कुछ परिवारों में शायद यह लड़कियों के लिये मुमकिन नहीं है। जहां लड़कियों को पाबंदियों से आजादी मिलती है,वहां अधिकतर मौकों में लड़कियां बाजी मार लेती हैं। जहां मौका नहीं मिल पाता है वहां लड़कियां सीमित होकर रह जाती हैं। परिवार लड़की को एक प्रोटेक्टिव इंटिटी की तरह ट्रीट करता है। जब आपको परिवेश ही नहीं मिलेगा, वहां लडकियां क्या करेंगी।

गौरतलब है कि यूपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा के हाल ही में संपन्न नतीजों में लड़कियों ने टॉप तीन में अपनी जगह बनाई है। पहले स्थान पर श्रुति शर्मा, दूसरे स्थान पर अंकिता अग्रवाल, तीसरे स्थान पर गामिनी सिंगला ने अपना परचम लहराया है। इससे पहले यह कारनामा 2009 में हुआ था जब बरेली में जन्मी शुभ्रा सक्सेना ने आईएएस में टाप किया था जबकि दूसरी रैंक पंजाब की शरनदीप बरार और तीसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ की किरण कौशल रही थी। आईआईटी रूड़की से बीटेक करने के बाद शुभ्रा ने एक साफ्टवेयर कंपनी में कुछ समय तक नौकरी की और बाद में दूसरे प्रयास में आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

शुभ्रा सक्सेना ने कहा कि एक सृजनात्मक शक्ति जो एक लड़की अथवा महिला में होती है,वह लड़कों में नहीं दिखायी देगी। एक छह साल की बच्ची अपने खेल के सामान को संजोयगी ,संभालेगी जबकि इसी उम्र का बच्चा उसे अस्त व्यस्त कर दूसरे खेल में लग जायेगा। यह प्रकृति ने हम लड़कियों को जन्म से दिया है। पुरूष का ध्यान शक्ति रूपी ऊर्जा को बढाने की तरफ होता है जबकि औरत सृजनात्मक और सुधारवादी दिशा में काम करने की पक्षधर होती है। इस कार्यशैली का आभास महिला नेतृत्व वाले देशों की व्यवस्था से आसानी से लगाया जा सकता है। इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि पुरूष शक्ति विंध्वसक होती है मगर अगर सकरात्मकता और सृजनात्कता समाज में लानी है तो महिलाओं की भागीदारी बढानी होगी।

उन्होने कहा कि उदाहरण के तौर पर यदि ब्यूरोक्रेसी में पुरूषों के बराबर महिलायें हो तो ब्यूराक्रेसी की संस्कृति ही बदल जायेगी। हमारे समाज का स्वरूप ही 50-50 का है मगर इसके बावजूद महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार नहीं मिले हैं। हमें सोचना होगा कि सदियों पहले की तरह अब हम जंगल में नहीं रहते जहां पुरूषों का काम महिलाओं की सुरक्षा का था। अब हम सिविलाइजेड सोसाइटी में निवास करते हैं जहां महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार मिलने चाहिये। हमे दया की जरूरत नहीं बल्कि बराबर अवसर की दरकार है। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या रोजगार का, कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की तरफ ज्यादा तवज्जो देनी होगी। समाज को मनोवैज्ञानिक रूप से समर्थन देना चाहिये बाकी महिलाये खुद को बेहतर करने में सक्षम हैं। अवसर और सोच की समानता की महिलाओं की जरूरत है।

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