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अधिशासी अभियंता मलखान सिंह साहेब पटल और क्षेत्र(फील्ड)बदलने में शासनादेश पर कब करेंगे गौर?

 

अवर अभियंता डीएन सिंह,धनीराम भार्गव,राजेश पाल,श्रवन कुमार पटल बाबू निर्धारित समयसीमा पटल/ क्षेत्र(फील्ड)में कर चुके पार

 

वाकई में क्या प्रांतीय खंड(लोनिवि)सीतापुर में स्थानांतरण प्रक्रिया हो गयी रूपया कमाने का जरिया

 

 

रिपोर्ट अजय सिंह ब्यूरो चीफ सीतापुर

सीतापुर। शासनादेश होने के बावजूद अधिकारी संज्ञान नहीं ले रहे जब बड़ी अहम बात मानी जा रही है क्या अधिकार क्षेत्र में नहीं या फिर जो बातें हो रही हैं की स्थानांतरण प्रक्रिया प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग में रुपया कमाने का जरिया बन चुकी है इसे सही माना जाए।जिस तरीके से शासनादेशों के अनुसार निर्धारित समय सीमा को पार कर चुके हैं, कर्मचारी उसके बावजूद भी वह उन्हीं जगह पर बने हुए हैं जहां से उन्हें हटा दिया जाना चाहिए था। इस तरीके से शासनादेश का पालन होता है तो फिर शासनादेशों का महत्व क्या रहेगा, यह बड़ा सवाल है?बताते चलें की बातें हो रही हैं कि अधिशासी अभियंता मलखान सिंह को कार्यालयाध्यक्ष प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग का होने के चलते यह पावर बतायी जाती है कि वह शासनादेशों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित समय सीमा से परे जो क्षेत्र(फील्ड) व कार्यालय पटल पर कर्मचारी कार्य देख रहें है, उनको परिवर्तित किया जाए। लेकिन फिर भी शासनादेशों को अनदेखा किया जा रहा है क्या अधिशासी अभियंता प्रांतीय खंड के पास वाकई क्षेत्र(फील्ड)व पटल बदलने की पावर नहीं, समझ से परे है? बताते चलें कि प्रांतीय खंड लोक निर्माण विभाग ऐसे कर्मचारी हैं जो विगत लगभग 18 वर्षों से सेवाएं दे रहे हैं जिनका नाम अवर अभियंता डीएन सिंह बताया जा रहा है और अन्य अवर अभियंता धनीराम भार्गव,राजेश पाल व श्रवन कुमार भी निर्धारित समय सीमा से अधिक समय हो चुका है फिर भी क्षेत्र(फील्ड)में कार्य देख रहे हैं। जिस तरीके से शासन आदेशों की अवहेलना का सिलसिला प्रांतीय खंड में कायम है। उससे यह भी बातें हो रही हैं कि इन सभी के पीछे उच्चाधिकारियों का संरक्षण है ।अगर जो जहां रहना चाहता है वहीं पर रहना चाहता है सुविधा शुल्क तो देना है,और सुविधा शुल्क तो उसी को जाएगा, जिसके पास वह पावर होगी जो स्थानांतरण कर इधर से उधर कर सकता है,तो जो कर्मचारियों का दर्द समझते हुए उनके सुर में सुर गाएगा तो यह तय है शायद कुछ न कुछ तो लिया ही होगा।तो जिसके पास पावर है तो उसका संरक्षण माना जाएगा।ऐसी स्थितियां बता रही हैं,चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन अगर सच का पता लगाया जाए तो कुछ न कुछ गड़बड़ तो है।लोक निर्माण विभाग प्रांतीय खंड सीतापुर में जिस तरीके से शासनादेशों के बावजूद समूह(ग)के कर्मचारियों का फेरबदल नहीं किया जा रहा।जो व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है,क्या ऐसा होना चाहिए और इसके पीछे अधिकारियों का क्या मकसद है?जो साफ है की स्थानांतरण प्रक्रिया में विभागीय उच्चाधिकारी धन उगाही का जरिया बनाए हुए हैं। अब इस मामले में शासन को ध्यान देना होगा और उन उच्चाधिकारियों को इसकी जद में लाना होगा जिनके द्वारा स्थानांतरण प्रक्रिया में निर्धारित समय सीमा पार करने के बावजूद कर्मचारी एक ही जगह पर बने हुए हैं,तो क्यों? क्या वाकई में लोक निर्माण विभाग के उच्चाधिकारियों के लिए स्थानांतरण प्रक्रिया पैसे कमाने का जरिया बन चुकी है?इस बिंदु की जांच होनी चाहिए दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।

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