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भाषा विभाग द्वारा “भारतीय भाषा उत्सव” धूमधाम से आयोजित किया गया

 

ख़बर दृष्टिकोण लखनऊ।

भारतीय भाषा उत्सव का धूमधाम से आयोजित किया गया। इस अवसर पर “बहुभाषीय राष्ट्र विविधता में एकता” विषय पर प्रथम सत्र पूर्वाहन 11:00 बजे से बहुभाषी संगोष्ठी तथा द्वितीय सत्र अपराह्न 04:00 बजे से बहुभाषीय काव्य पाठ एवं रामायण पर आधारित नाटक का मंचन कराया गया।

 

समारोह में अपर मुख्य सचिव भाषा विभाग जितेन्द्र कुमार ने अपने उदबोधन में कहा कि तमिल के प्रख्यात कवि सुब्रमण्यम भारती जी के जन्म दिवस दिनांक 11 दिसम्बर को भारत सरकार द्वारा भारतीय भाषा दिवस घोषित करते हुए भारतीय भाषा उत्सव के रूप में मनाये जाने से अवगत कराया है। इस वर्ष भारत सरकार के निर्देश के क्रम में 75 दिवसीय भारतीय भाषा उत्सव दिनांक 28.09.2023 से 11.12.2023 तक मनाया जा रहा है। इसका प्रारम्भ दिनांक 28.09.2023 से होकर समापन कार्यक्रम दिनांक 11.12.2023 को होगा। चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती एक सुप्रसिद्ध भारतीय लेखक, कवि और पत्रकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और तमिलनाडु के समाज सुधारक थे। महाकवि भारती के रूप में लोकप्रिय, वे आधुनिक तमिल कविता के अग्रदूत थे।

 

कार्यक्रम में आमंत्रित वक्ता प्रो० सूर्य प्रसाद दीक्षित, हिन्दी ने कहा कि विविध भाषाओं को भारतीय सांस्कृतिक चेतना के रूप में जानने समझने व अपनाने की आवश्यकता है। पद्मश्री डॉ० विद्याबिन्दु सिंह, हिन्दी ने कहा कि भारतीय भाषाओं के परस्पर प्रचार की स्तरीय व श्रेष्ठ पुस्तकों को अनुवाद के द्वारा सम्प्रेषणीय बनाया जाये। प्रो० आजाद मिश्र, संस्कृत ने कहा कि संस्कृत को प्रतिनिधित्व उनके अनुसार जितनी भारतीय भाषाएँ हैं उनका स्वरूप अलग है परन्तु संस्कृत से अनुप्रणित हैं, विभिन्नता में एकता है धर्म का उद्देश्य सबमें समान है। डॉ० अशोक शतपथी, उड़िया, डॉ० तुलसी देवी, सिंधी डॉ० पठान ताहिर खान हुसैन खान, मराठी एवं डॉ० आर तमिलशिलवन, तमिल द्वारा अपने-अपने विचार व्यक्त किये गये।

 

संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव ने कहा कि अपनी मातृभाषा के साथ-साथ अधिक से अधिक भारतीय भाषाओं को सीखने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने तथा पड़ोसी भाषा के प्रति प्रेम और आनंद की अनुभूति के लिए भाषाई सौहार्द विकसित करने की आवश्यकता है। किसी अन्य भारतीय भाषा को सीखना बोलना एक फैशन प्रतिष्ठा तथा आनंद का विषय बनना चाहिए।

द्वितीय सत्र में बहुभाषीय काव्य पाठ में पद्मश्री डॉ० अशोक चक्रधर, हिन्दी, अपनी विख्यात कविता डरते झिझकते सहमते सकुचाते हम अपने होने वाले ससुर जी के पास आए, बहुत कुछ कहना चाहते थे पर कुछ बोल ही नहीं पाए आदि को सुनाया। डॉ० सर्वेश अस्थाना हिन्दी, अपनी विख्यात कविता एक दस्तक दे गई वो सांझ की बेला द्वार खोला तो हवा थी और मैं बिल्कुल अकेला का पाठ किया। डॉ० अशोक शतपथी, उड़िया, वागीश शास्त्री “दिनकर”, संस्कृत अजहर इकबाल उर्दू द्वारा अपनी विख्यात शायरी घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए मैं खुद से रूठ गया हूँ उसे मनाते हुए का काव्य पाठ किया। डॉ० सुभाष चन्द्र रसिया, भोजपुरी ने अपनी कविता तरसे अँखियाँ हमरी सखियाँ, अब घेर लिए बदरी बदरी नित श्याम रहे मन मे हमरी, दिल खोज रहे डगरी डगरी जब रूप घरे मनिहार सखी, घनश्याम घुमे नगरी नगरी मनमोहन मीत धरे अंगुरी, चहुओर हुई कजरी कजरी का काव्य पाठ किया। डॉ० अशोक अज्ञानी, अवधी ने आपनि भाषा आपनि बानी अम्मा हैं भूली बिसरी कथा किहानी अम्मा हैं पूरे घर का भारु उठाए खोपड़ी पर जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा हैं का काव्य पाठ किया। श्रीमती जगदीश कौर पंजाबी बल्लू चौथाणी सिंधी, द्वारा कविता पाठ किया गया। बहुभाषीय काव्य पाठ की अध्यक्षता पद्मश्री चक्रधर द्वारा की गयी।

 

रामायण पर आधारित भव्य नाट्य प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर प्रस्तुति की परिकल्पना, निर्देशन एवं कोरियोग्राफी पं० अनुज अर्जुन मिश्रा द्वारा किया गया।

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