रोहितसोनी
खबर दृष्टिकोण
कालपी(जालौन)। क्षेत्र बुन्देलखण्ड का प्रवेश द्वार यमुना तथा बेतवा नदी के तट पर बसा हुआ है।यह महिर्षि वेद व्यास कालपी ,ऋषि पाराशर प्रकाशन, ऋषि बालमीक बबीना,ऋषि कुम्भज कुरहना, जैसे महा ऋषियों की जन्म तथा तप स्थली है। यहां दुनिया का सुप्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी है जिसे भगवान कृष्ण के पौत्र ने बनवाया था।कालपी प्राचीन काल में कालप्रिया नगरी के नाम से विख्यात थी।समय के साथ इसका नाम संक्षिप्त होकर कालपी हो गया।कहां जाता है कि इसे चैथी सताब्दी में राजा वासुदेव ने बसाया था।
इस नगर का इतिहास चंदेल कालीन है दसवीं सदी के मध्य में कालपी में चंदेलों ने अपना राज्य स्थापित किया था चंदेल नरेश मदन वर्मा और परमार्दिदेव(12वीं सदी)के समय कालपी एक समृद्ध शाली नगरी थी। 12वीं सताब्दी के अंत में इसपर कुतुबुद्दीन ऐवक का अधिकार हो गया।1535में इस पर मल्लावां के राजा हुसंगशाह ने अधिकार कर लिया।अकबर के समय में कालपी सरकार (जिला)का मुख्यालय बन गया।अकबर के प्रसिद्ध दरबारी पंडित महेश दुबे जिन्हें बीरबल की उपाधि मिली थी कालपी के ही थे।मध्य काल में कालपी देश के प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में जानी जाती थी। यहां एक विशाल दुर्ग था जो अब लगभग समाप्त हो चुका है।कालपी की प्राचीन इमारतों में दुर्ग के अतिरिक्त बीरबल का रंग महल मुगलों की टकसाल, गोपाल मन्दिर श्री दरवाजा चैरासी गुम्बद,लंका मीनार,पाहूलाल देवालय काली हवेली आदि प्रमुख हैं।
वैसे तो समय समय पर कालपी की धरोहरों के बारे में जानकारी दी है आज केवल सूर्य मंदिर की संक्षिप्त चर्चा कर लेते हैं। पहला सूर्य मंदिर उड़ीसा के कोड़ार्क में दूसरा पाकिस्तान के मुल्तान में और तीसरा उत्तर प्रदेश के कालपी में है।इसे भगवान श्री कृष्ण के पौत्र साम्भ ने बनवाया था। दुर्वासा ऋषि के श्राप के बाद साम्भ कुष्ठ रोगी हो गए थे देवताओं की सलाह पर शाम्भ ने यहां आकर कठोर सूर्य उपासना की थी जिसके बाद वह निरोगी हुए थे और सूर्य भगवान का विशाल मन्दिर बनवाया था।